________________ 144 पाइअविनाणकहा-२ विग्घे वि अविचलाणं अम्हाणं देहि पव्वजं / तओ गुरुणा दिक्खिऊणं सव्वो कायव्वविही निदंसिओ, सुत्तत्थेहिं च परं निप्फत्तिं सम्मं उवणीआ / गुरुकुलवासे सुचिरं वसिऊणं ते महासत्ता एगया नियगुरुणो आणाए एगागिविहारिणो जाया / वुत्तं च नाणस्स होइ भागी, थिरयरओ दंसणे चरित्ते य / धन्ना जावकहाए, गुरुकुलवासं न मुंचंति / / 2 / / ____ अह अणिययवित्तीए विहरमाणो सम्मं उवउत्तो कह वि अहिच्छत्ताए पुरीए जयसुंदरो साहू समागओ / तत्थ य जा किर तेणं परिणीया सेट्ठिणो धूया सोमसिरी आसी / सा पावा तक्कालं असईवित्तीए गब्भवई संजाया चिंतेइ-जइ जयसुंदरो इह एइ तो तं उप्पव्वाविय नियदुञ्चरियं निगृहेमि / तइया भिक्खट्ठाए गिहे पविट्ठो तीए य सो साहू दिट्ठो, तो समाणसीलाए सएज्झियाएं सहीए झत्ति गेहस्स अंतो पक्खित्तो / तीए भणिओ य-'हे जीवनाह ! 1. प्रातिवेश्मिकया / /