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________________ गयाणुगइगोवरि मयणमच्चुकाणस्स कहा-२६ 65 एगया तेण सुयं-तं पवहणं जलम्मि निबुडं, जंमि आरोहिऊण परदीवे गमिरो हं आसि / तया तस्स बहुआणंदो संजाओ, जओ हं खलिअपाओ तया पडिओ, तं सोहणं जायं / अन्नहा हं तंमि पवहणे गच्छेज्जा, तया ममावि केरिसी अवस्था होज्जा, हं पि जले निमग्गो सिया / एवं 'तस्स पुव्वं दुक्खं पि, पच्छा सुहजणगं संजायं' ति / / उवएसो धणिपुत्तस्स दिटुंतं, परिणामसुहावहं / जाणित्ता ‘पत्तकालंभि, समभावेण चिट्ठए' / / 25 / / परिणामसुहावहकज्जम्मि धणिअपुत्तस्स पणवीसइमी कहा समत्ता / / 25 / / -गुजरभासाकहाए 26 छव्वीसइमी गयाणुगइगोवरि मयणमञ्चकाणस्स कहा - - - गयाणुगइओ लोगो, परमटुं न चिंतइ / मयणमझुकाणे हि, सव्वे लोगा समागया / / 1 / / कम्मिवि नयरे कुंभारस्स भज्जाए सह नरिंदरण्णीए सहित्तणं अहेसि / कुंभगारभज्जाए एगा गद्दही अईव वल्लहा आसि / गद्दहीए पुत्तो जायइ, किंतु सो जायमेत्तो मरइ / तेण कुंभगारभज्जा सएव झूरेइ / एगया तीए गद्दहीए पुत्तो संजाओं / सो अईव सेयरूवो अस्थि / तीए तस्सुवरि बहू नेहो अत्थि, तओ तस्स नामं मयणु त्ति दिण्णं। सा मयणं सम्मं पालेइ, एगंमि वासे जाए समाणे सो वि मयणो मच्चु पत्तो / तया सा कुंभगारी अईव रोवइ / तीए रोवमाणीए तप्परिवारो वि रोवेइ / तंमि काले नरिंदभज्जा किंपि कारणत्थं कुंभगारीगेहे दासिं पेसेइ / सा दासी तत्थ आगया सपरिवारं च कुंभगारिं रुवंतिं दट्ठण चिंतेइ-'नूणं इमीए गेहे कोवि मओ, तेण सव्वे रुवंति' / तया सा दासी सिग्धं तत्तो निस्सरिअ रण्णि कहेइ–'तीए गिहे को वि मरिओ' / तं सोच्चा सदासी रण्णी कुंभगारीए गेहे गच्चा, रुवंतीए तीए समीवे उवविसिऊण सा रोविउं लग्गा, नरिंदो वि तत्थ महिसीए गमणं सोञ्चा, सो सप्पहाणो तत्थ गओ, पच्छा सेणावई, कोट्टवालो, नयरसेट्ठी जाव पउरजणा वि गंतूण रोविउं लग्गा / को एत्थ मउ त्ति' केवि न पुच्छंति, सव्वे रुवमाणा संति / तइआ तत्थ एगो वइएसिगो आगओ, सो अन्नं पउरजणं पुच्छइ 1. श्वेत- / /
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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