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________________ अमंगलियपुरिसस्स कहा-१८ त्ति' / सो कहेइ-'मज्झ नरिंदमुहदसणेच्छा अत्थि' / जया सो नरिंदसमीवमाणीओ तया नरिंदो तं पुच्छइ“किमेत्थ आगमणपओयणं ?" / सो कहेइ-“हे नरिंद ! पच्चूसे मम मुहस्स दंसणेण भोयणं न लब्भइ, परंतु तुम्हाणं मुहपेक्खणेण मम वहो भविस्सइ, तया पउरा किं कहिस्संति ? / मम मुहाओ सिरिमंताणं मुहदसणं केरिसफलयं संजायं, नायरा वि पभाए तुम्हाणं मुहं कहं पासिहिरे ?" / एवं तस्स वयणजुत्तीए संतुट्ठो नरिंदो वहाएसं निसेहिऊण पारितोसिअं च दच्चा तं अमंगलिअं संतोसीअ / / उवएसो अमंगलमुहस्सेवं, रक्खणं धीमया कयं / सोचा तुम्हे तहा 'होह, मईए कजसाहगा' / / 2 / / अमंगलियपुरिसस्स अट्ठारसमी कहा समत्ता / / 18 / / -गुजरभासाकहाए
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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