SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 3 तइआ वूडमंतिणो कहा - - - - -- - - - सञ्चनायस्स दाउणो, मंतिणो संति थोवया। जह अब्भुयनायंमि, वुड्डमंतिनिदंसणं / / 1 / / एगस्स सेट्ठिवरस्स खत्तियपुत्तो लेहवाहगो अस्थि / सो दुब्बलो वि अईव निब्भओ अत्थि / एगया सिट्ठिणो लेहं गहिऊणं गामंतरे गओ / अडवीए एगो सिंघो मिलिओ / तेण सह जुद्धं काऊण असिणा हंतूण अग्गओ गओ / तत्थ कोवि रायसुहडो समागओ / मयं सीहं दट्ठण, मए एसो हओ त्ति जंपतो निवस्स पुरओ गओ / नरिंदो संतुट्ठो सिंघवहाओ / पारितोसिअंतस्स दिण्णं / सव्वलोएहिं सो पसंसिओ / सो खत्तियपुत्तो कज्जें काऊण पच्छा नियग्गामे आगओ / सीहवहवुत्तंतो सेट्ठिणो कहिओ / सेट्ठी बेइ-'तुं असच्चपलावी असि / कहं
SR No.004268
Book TitlePaiavinnankaha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKastursuri, Somchandrasuri
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy