________________ नायज्जणोवरिं जिणदत्तस्स कहा-५२ 137 सो मुणिवरो एसो अप्पिओ आहारो न कप्पेइ मम तह य न पञ्चप्पिज्जइ' एवं वियारित्ता तं लडुअं चुण्णिऊण रक्खाए परिट्ठवेइ / एवं विणटुं तं दद्वण सो तम्मि लुद्धो निरसो पच्छागओ / सो समणवरो वणंसि गंतूण निराहारो समभावो सज्झायज्झाणंमि संलीणो जाओ / सो वणिओ मुणिवरस्स अंतरायकम्मणा बद्धभोगंतरायकम्मो मच्चु लहिऊण मम्मणसेट्ठी संजाओ / एवं सुपत्तदाणेण पत्तबहुधणो वि भोगंतरायकम्मणा तिल्ल-चवलं विणा अन्नं किमवि साइउं न पारेइ / एवं अंतरायकम्मुणा लद्धभोगा वि न भुंजिजंति / / उवएसो भोगंतरायकम्मस्स, विवागं असमंजसं / पासित्ता अंतरायाओ, तुम्हे भवेह दूरओ / / 2 / / भोगंतराए मम्मणसेट्ठिस्स एगपण्णासइमी कहा समत्ता / / 51 / / -जणपरंपराओ दुपंचासइमी नायजणोवरिं जिणदत्तस्स कहा - - - - - - - - - - - - - 'नायनिप्पण्णदव्वस्स, परिणामो सुहो' जओ / धम्मिओ धीवरो जाओ, जिणदत्तस्स सद्धणा / / 1 / / एगया भोयनरिंदो रायजोग्गपासायं कारिउं नेमित्तियवराणं पुरओ खायमुहुत्तं पुच्छइ, जओ सुहदिणे आरंभिज्जमाणो पासाओ बहुवंसपरंपरं जाव चिट्ठइ / जोइसिआ वि सम्मं निरिक्खित्ता वेसाहसुद्धतइयादिणं अप्पेइरे। तंमि दिणे समागए महीवालो पहाणमंति-पुरोहिय-सेणावइ-सेट्ठिप्पमुहनयरपहाणपुरिसे बोल्लावेइ, जोइसिआ वि खायमुहत्तसमयंसि खायभूमीए विविहवरपुष्फाइवत्थूइं खिवंता नरवई वयंति-'जइ नायज्जियपंचजच्चरयणाई एत्थ पक्खिवीएज्ज तया इमीए भूमीए निम्मविओ पासाओ वाससहस्सं जाव अखंडिओ भवे' / नरिंदो कहेइ'मज्झ कोसागारे बहूई रयणाइं संति, ताणि गिण्हह' / नेमित्तिआ वयंति-'करभारपीलियपरयाहिंतो लद्धं दव्वं कहं नायनिप्पण्णं सुद्धं च सिया ?, अओ एत्थ सहामझूमि जे सुहिणो वावारिणो संति, तेहिंतो मग्गावेह' / नरिंदो सहाथिअ-सव्ववावारिवग्गेसुं दिहिँ देइ,किंतु सव्वे वावारिणो नियं दव्वं केरिसं, तं तु ते च्चिय जाणंति, अओ ते सव्वे हिट्ठमुहा चिटुंति, न किंपि वयंति / तया नरवई बोल्लेइ-'मज्झ नयरे किं नायमग्गदव्वज्जणसीलो