________________ 98 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 38-39 चिंधं कलंब-सुलसे, वड-खटुंगे असोग-चंपयए / नागे तुंबरु अ ज्झए, खटुंग विवज्जिया रुक्खा // 38 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् सुगम है / // 38 // विशेषार्थ पहले सत्रहवीं गाथामें भवनपतिनिकायके देवोंको पहचाननेके लिए जिस तरह मुकुटादिमें चिह्न बताये थे, उसी तरह व्यन्तरनिकायको पहचाननेके लिए स्वस्वविमानोंकी ध्वजामें रहनेवाले चिह्नोंका वर्णन करते हैं / 1. प्रथम पिशाचनिकायके देवोंकी ध्वजामें कदम्ब नामक वृक्ष जैसा आकार होता है और वैसे ही आकारका आलेख होता है। 2. भूतनिकायके देवोंकी ध्वजामें सुलंसं नामके वृक्षविशेषका चिह्न होता है। 3. यक्ष निकायके देवोंकी ध्वजामें वटवृक्षका, चौथे राक्षसनिकायके देवोंकी ध्वजामें तपस्वी तापसका उपकरण विशेष खट्वांगका चिह्न, पाँचवें किन्नरनिकायके देवोंकी ध्वजामें अशोकवृक्षका, छठे किंपुरुषनिकायके देवोंकी ध्वजामें चंपक वृक्षका, सातवें महोरगनिकायके देवोंकी ध्वजामें नागनामक वृक्षका और आठवें गान्धर्वनिकायके देवोंकी ध्वजामें तुंबरु नामके वृक्षका चिह्न होता है। ऊपर कहे गए चिह्नों में केवल एक चौथे राक्षसनिकायके चिह्न खट्वांग-भिक्षापात्र विशेषके आकारके अतिरिक्त शेष निकायोंके चिह्न विविध प्रकारके वृक्षोंके हैं / [38] अवतरण-प्रस्तुत व्यन्तरदेवोंके शरीरोंका वर्ण बताते हैं जक्ख-पिसाय-महोरग-गन्धव्वा साम किंनरा नीला / रक्खस-किंपुरुसा वि य, धवला भूया पुणो काला // 39 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् // 39 // विशेषार्थ-पहले भवनपतिदेवोंके वर्णन-प्रसंगमें, जिस तरह उन देवोंके शरीरका वर्ण वर्णित किया था उसी तरह व्यन्तरनिकायके देवोंके शरीरका वर्ण कैसा होता है, यह बताते हैं प्रथम पिशाचनिकायके देवोंका, तीसरे यक्षनिकायके देवोंका, सातवें महोरंग और आठवें गान्धर्व इन चारों निकायोंके देवोंका देहवर्ण श्याम अर्थात् कृष्णवर्ण समझना / पांचवें किन्नरोंके शरीरका वर्ण श्याम, तथापि किंचित् नीलवर्णके आभाससहित जानना / चौथे राक्षसनिकाय और छठे किंपुरुषनिकायके देवोंका देहवर्ण उज्ज्वल होता है और दूसरे भूतनिकायके देवोंका देहवर्ण भी कृष्ण (श्याम) होता है / [39]