________________ भवनपति इन्द्रोंके सामानिक तथा आत्मरक्षक देवांकी संख्या ] गाथा-३० [ 89 अवतरण-अब इस भवनपति निकायके इन्द्रोंके सामानिक देवों तथा आत्मरक्षक देवोंकी संख्या कहते हैं; चउसट्ठि सहि असुरे, छच्च सहस्साई धरणमाईणं / सामाणिया इमेसिं, चउग्गुणा आयरक्खा य // 30 // गाथार्थ-असुरकुमार निकायके, चमरेन्द्र तथा बलीन्द्र इन दो इन्द्रोंके क्रमशः 64 हजार तथा 60 हजार सामानिक देव हैं। अवशिष्ट धरणेन्द्र आदि इन्द्रोंके छ:-छः हजार सामानिक देव हैं। और सामानिक देवोंकी जो संख्या कही है उससे चारगुनी संख्या आत्मरक्षक देवोंकी है // 30 // विशेषार्थ-प्रथम सामानिक अर्थात् क्या ? 'इन्द्रेण सह समाने तुल्ये शुतिविभवादी भवाः सामानिकाः' अर्थात् इन्द्रके समान कान्ति-वैभवादि-ऋद्धिसिद्धिवाले सामानिक देव कहलाते हैं / इन देवोंमें मात्र इन्द्रत्व अर्थात् उस देवलोकका आधिपत्य नहीं होता, शेष सर्व ऋद्धि इन्द्रके समान होती है / ___ साथ ही 'इन्द्राणाममात्यपितृगुरुपाध्यायमहत्तरवत् पूजनीयाः स्वयं' राजा होने पर भी राजाको जिस तरह मन्त्रीश्वर, पिता, गुरुवर्ग-उपाध्याय (पाठक) और गुरुजन पूजनीय होते हैं, उसी तरह इन्द्रको ये सामानिक देव पूजनीय (आदर देने योग्य ) होते हैं / चाहे इन्द्र महाराजा ऐसा आदर रक्खें फिर भी वे देव तो इन्द्रको स्वामीरूप मानकर उनकी आज्ञाका पालन करते हैं। सारांश यह है कि इन्द्रोंको ये देव आदर देने योग्य हैं ऐसा व्यक्त करनेके लिये उनकी महत्ता दिखाते हैं, फिर भी ये देव उन्हें स्वामी स्वरूप ही मानते हैं ऐसा व्यक्त करके परस्पर स्वामी-सेवकभाव भी बताया है। - आत्मरक्षक अर्थात् क्या ? इन्द्राणामात्मानं रक्षन्तीत्यात्मरक्षकाः इन्द्रकी आत्माकी रक्षा करे वह / यहाँ आत्म शब्दसे इन्द्रका अंग-शरीर समझें / - आत्मरक्षक देव धनुष आदि सर्वशस्त्र ग्रहण करके इन्द्र-महाराजोंकी रक्षाके लिए सर्वदा . सज्ज रहते हैं। जिस तरह राजा-महाराजाओंके यहाँ अंगरक्षक (बॉडीगार्ड-Body Guard) शस्त्रसज्ज बनकर अपने मालिककी दत्तचित्त होकर सतत रक्षा किया करते हैं वैसे ही इन्द्रकी-आत्माकी रक्षाके लिये वे आत्मरक्षक देव भी, इन्द्रमहाराज सभामें बैठे हो, विचरण करते हों अथवा चाहे किसी भी स्थानमें हों, तब भी वे अनेक प्रकारके शस्त्रादिसे युक्त होकर अपने स्वामी इन्द्रकी रक्षामें सतत परायण रहते हैं। वे आयुध कवचसे सज्ज होकर बृ. 12