________________ 88 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा-२९ गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 29 // विशेषार्थ-मनुष्य लोकमें उनके पहनावेसे भी लोग पहचाने जाते हैं। जैसे श्वेत वस्त्रवाले हों वे अमुक सम्प्रदायके साधु, रक्त वस्त्रवाले अमुक सम्प्रदायके, काली अचकन ( कंचुक ) वाले हों तो वे फकीर आदि / इसी प्रकारसे देवोंको भी उनके वस्त्रों द्वारा पहचाननेका एक प्रकार है। उनमें पहले असुरकुमारके वस्त्र रक्तवर्णके होते हैं। दूसरे नागकुमारों, सातवें उदधिकुमारों, चौथे विद्युत् कुमारों, छठे द्वीपकुमारों और पांचवें अग्निकुमारों इन पांचोंके वस्त्रोंका वर्ण श्याम होता है। आठवें दिशिकुमार निकाय, दसवें स्तनितकुमार निकाय और तीसरे सुवर्णकुमार 'इन तीनों निकायोंके देवोंके वस्त्र उज्ज्वल वर्णवाले होते हैं, और नौवें वायुकुमार निकायके देवोंके वस्त्रोंका वर्ण सूर्यास्त होनेके बाद खिली हुई विविधरंगकी संध्याका जैसा रंग होता है वैसा है। अर्थात् वैसे वर्णके वस्त्रोंका परिधान करते हैं। . .. इस तरह बहुलतासे देवोंके चिह्न, शरीर, वस्त्र, वर्ण आदिका वर्णन किया। यहाँ भी यह वर्ण व्याख्या भवधारणीय शरीरके लिए पहने जाते वस्त्रोंके लिए समझें और वह सामान्यतया समझें, हेतुपूर्वक अथवा उत्तरवैक्रियमें उनसे अन्य वर्णके वस्त्र भी होते हैं // 29 // भवनपति देवोंके चिह्न तथा देह-वस्त्रके वर्णका यन्त्र / नाम देह-वर्ण श्याम-वर्ण वस्त्र-वर्ण लाल मुकुटमें चिह्न चूडामणिका सर्पका गरुडका नीला उज्ज्वल वज्रका नीला 1. असुरकुमार 2. नाग , 3. सुवर्ण , 4. विद्युत्कुमार 5. अग्नि , 6. द्वीप , 7. उदधि , 8. दिशि ,, 9. (पवन) वायुकुमार 10. स्तनितकुमार कलशका सिंहका अश्वका हाथीका मगरका शरावसम्पुटका | नील , सुवर्ण , उज्ज्वल संध्यावर्ण उज्ज्वल