________________ देवोंका द्वितीय भवनद्वार ] गाथा-१९ [ 79 1. 'असुरकुमार' ये देव सर्वागोपांगोंसे परम लावण्यवाले, सुन्दर, देदीप्यमान मुकुटको धारण करनेवाले, बड़ी कायावाले और श्याम-कान्तिवाले होते हैं। 2. 'नागकुमार' मस्तक तथा मुख पर अधिक शोभा युक्त, मृदु और ललित गतिवाले श्वेतवर्णी होते हैं। 3. 'सुवर्णकुमार' गरदन तथा उदरसे शोभायमान, कनक गौरवर्णमय होते हैं / 4. 'विद्युतकुमार' स्निग्ध-अवयवोंसे सुशोभित, जित-स्वभावी, ज्योति-स्वभावी, तपे हुए सुवर्णवर्णमय होते हैं। 5. 'अग्निकुमार' सर्वा गोपांगसे मनोमान प्रमाणवाले, विविध प्रकारके आभूषणोंको धारण करनेवाले, तप्त सुवर्णके समान वर्णयुक्त होते हैं / 6. : द्वीपकुमार' स्कन्ध और वक्षःस्थल, बाहु और अग्र हस्तमें विशेष करके शोभा सहित, उत्तम हेमप्रभाके समान वर्णवाले होते हैं। 7. 'उदधिकुमार' उरु और कटिभाग-में अधिक शोभावाले, श्वेतवर्णी होते हैं। 8. : दिक्कुमार' जंघा और पैरों में अत्यन्त शोभावाले, जातिशाली स्वर्णसमान गौरवर्णवाले होते हैं। ___ 9. 'वायुकुमार' स्थिर-पुष्ट-सुन्दर और गोल गात्रोंवाले, गम्भीर और नत उदरयुक्त, निर्मल ऐसे प्रियंगु वृक्षके जैसी श्यामकान्तिवाले होते हैं। 10. 'स्तनितकुमार' स्निग्धावयवी, अति गम्भीर नादवाले, जातिवान् सुवर्णके समान कान्तिवाले गौर होते हैं। . ये भवनवासी देव सदैव विविध प्रकारके आभूषण तथा शास्त्रोंसे अत्यन्त शोभायमान होते हैं। .. प्रश्न-भवनपतिके दसों प्रकारके देवोंको 'कुमार' शब्दसे क्यों संबोधित किये गये ? उत्तर-लोकमें मौज-शौकमें, अढखेलीमें, छेड़छाडमें और क्रीडा करनेमें जो आनन्द माने उसे कुमार या बालक कहते हैं / ___ ऐसे बालक रास्ते चलते जानवरोंको बिना दोषके पत्थर मारें, लकड़ी मारें, कुत्तके कान पकड़े, बकरीके सींग और ढोरके पूछोंके साथ चेष्टाएँ भी करें / ऐसे कुतूहलसे जैसे वे अनेक प्रकारसे रमत-गमत खेल-कूद करके खुश होते हैं / उसी तरह ये देव भी बाल किशोरवयके योग्य चेष्टा अर्थात् खेलना, कूदना, अच्छे अच्छे वस्त्रादि पहनना, साथ ही