________________ 78 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी .... [ गाथा 19 है, और उत्तरदिशाके वैश्रमण नामके लोकपालका उत्कृष्ट-आयुष्य दो पल्योपमका है। इस तरह सौधर्म देवलोकके लोकपालोंकी स्थितिका वर्णन किया / 07 ___ अन्य निकायों में भी लोकपाल होते हैं, उनकी स्थिति, उनके नाम, उन लोकपालोंकी पर्षदा, उनका ऐश्वर्य, उनका नित्य-कर्त्तव्य आदि स्वरूप अन्य ग्रन्थोंसे जानने योग्य .. है। [18] (प्र० गा० सं० 2) इस तरह देवोंका प्रथम ‘स्थितिद्वार' समाप्त हुआ / इति देवानां प्रथमं स्थितिद्वारं समाप्तम् // - -- द्वितीय भवनहार अवतरण-अब देवगतिके विषयमें दूसरा 'भवनद्वार' वर्णित होता है, उसमें प्रथम भवनपति-निकायमें कितने प्रकारके देव होते हैं ? उसके वर्णनके साथ उसमें इन्द्र कितने होते हैं ? उसका भी निरूपण करते हैं-- 108 1 2 3 4 5 असुरा नाग-सुवन्ना, विज्जू अग्गी य दीव उदही अ / दिसि-पवण-थणिय दसविह, भवणवई तेसु दु दु इंदा / / 19 // गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 19 // विशेषार्थ-ग्रन्थकार महर्षिने प्रथम स्थिति-द्वारका उद्देश किया था उसके अनुसार उन देवोंकी स्थितिके संबन्धमें निर्देश हो चुका। अब दूसरा जो ‘भवनद्वार' आरम्भ किया जाता है उसमें भवनपति-निकायके देवोंके भवनके बारेमें कहने के लिये, प्रथम उस भवनके दसों निकायके देवोंके नाम उनके सामान्य वर्णनके साथ बताते हैं- . 107. जिस जिस देवलोकमें लोकपाल हैं वहाँ वहाँ आयुष्यस्थिति तथा उनके नाम भिन्न भिन्न होते हैं / हरएक लोकपालके तीन प्रकारकी पर्षदा होती है, उसकी जानकारीके लिए देखिये श्री जीवाभिगम तथा श्री लोकप्रकाशादि / . .. 108. तुलना कीजिये 'असुरा नागास्तडिताः, सुपर्णका बह्वयोऽनिलाः स्तनिताः / उदधि-द्वीप-दिशोदश, भवनाधीशाः कुमारान्ताः // 1 // [ हैमकोष ]