________________ * 320. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * बोधक क्रियाएँ-मस्तक हिलानेसे, हाथ-पैरकी चेष्टाओंसे अथवा आँखोंके इशारोंसे जो बोध-ज्ञान या समझ प्राप्त होती है वही अनक्षरश्रुत है। - इन दोनों भेदोंमें ही समग्र श्रुतके प्रकार समा जाते हैं फिर भी अभ्यासियोंकी समझ-ज्ञानको विशद बनानेके लिए चौदह या बीस प्रकार दिखाए गए हैं। यहाँ पर . शेष 12 तथा प्रकारांतरसे किए गये बीस भेदोंकी व्याख्या विना नाम मात्र बतायी गई हैं। शेष बारह भेद-३-४, संज्ञि-असंज्ञि, 5-6, सम्यक्-मिथ्या, 7-8, सादिअनादि, 9-10, सान्त-अनंत, 11-12, गमिक-अगमिक, 13-14, अंग-अनंग / बीस भेद-१-२, पर्याय-पर्यायसमास, 3-4, अक्षर-अक्षरसमास, 5-6, पद- . पदसमास, 7-8, संघात-संघातसमास, 9-10, प्रतिपत्ति-प्रतिपत्तिसमास, 11-12, अनुयोग-अनुयोगसमास, 13-14, प्राभृतप्राभृत-प्राभृतप्राभृतसमास, 15-16, प्राभृतप्राभृतसमास, 17-18, वस्तु-वस्तुसमास, 19-20, पूर्व-पूर्वसमास / . इस प्रकार मति और श्रुतकी व्यवहार तथा निश्चययुक्त अन्य परिभाषाएँ अनेक प्रकार बनती हैं। इन्हें शास्त्र या गुरुगमसे जान लें। मति-श्रतके बगैर ( विना) किसीको भी केवलोत्पत्ति प्राप्त नहीं होती / 3. अवधिज्ञान-पहले 'अवधि' शब्द किस प्रकार बना है तथा इसकी अलगअलग कैसी व्युत्पत्तियाँ होती है यह देखते हैं, जिससे मूल शब्दका रहस्य समजानेसे उसके अर्थका स्पष्ट खयाल आ सके / 1. अवधानं अवधिः-अवधानका अर्थ होता है निर्णय / तो निर्णय किसका ? तो इसका उत्तर है रूपी पदार्थके साक्षात्कारका / कौन करेगा ? तो आत्मा करेगा / अब इसका भावार्थ यह होता है कि- रूपी पदार्थका आत्म साक्षात् रूप निर्णय अथवा साक्षात्करणरूप जो अर्थ व्यापार है उसका नाम अवधिज्ञान है। 2. 'अव'- अव्ययपूर्वक ‘धि' धातु परसे मी 'अवधि ' शब्द बनता है। वहाँ 'अव' अधो अर्थका वाचक होनेसे जो वस्तुको नीचे ही नीचे अधिक और अधिक विस्तृत बता सकते हैं वह / ( यद्यपि यह परिभाषा वैमानिक देवोंके लिए अधिक घटित होती है / फिर भी वैमानिकोंकी अवधिको अधिक महत्त्व देनेके लिए ही यह परिभाषा की गयी होगी।) 626. देखिए-उत्तरा०, स्था०, सम०, प्र० सा० इत्यादि /