________________ * कषायद्वारका विस्तृत वर्णन * जैसा है। ये मिसाल तो इस बातको सूचित करते हैं कि हम जलमें अपनी उँगलीसे लकीर खींचकर ( पानीमें ) भेद करनेका प्रयत्न तो करते हैं, लेकिन यह भेद कितना समय टिकता है ? पलभर ही। ज्यों-ज्यों उँगली आगे बढती जाती है त्यों-त्यों भेदल. कीर (भेदरेखा) नष्ट होकर पुनः पानी अभेद हो जाता है / इसके बादके दृष्टांतोंमें उत्तरोत्तर भेदलकीरोंका अस्तित्वमान बढता ही जाता है / ___ अब संज्वलनका मान बेत जैसा, प्रत्याख्यानीका लकडीके स्तंभ जैसा, अप्रत्याख्यानीका हड्डीके स्तंभ जैसा और अनंतानुबन्धीका मान पत्थरके स्तंभ जैसा है / यहाँ पर प्रथम बेतका प्रकार यह सूचित करता है कि मान प्राप्त होते हुए भी साधु पुरुष कभी भी झुकनेमें देर नहीं लगाते है और काष्ठके स्तंभको इससे अधिक देर लगती है, इस प्रकार उत्तरोत्तर समझ लीजिए / व्यवहारमें भी मानी मनुष्यको कड़े ( सस्त ) स्तंभ जैसा है, ऐसा बोलते हैं। यहाँ दृष्टांतमें (मिसालके तौरपर) स्तंभ ही लिया है / ___संज्वलन माया बाँसकी छाल अथवा छिलका जैसी ( नरकट अथवा नडके मीतर पतले और वक्र तंतु जो होते हैं वे ), प्रत्याख्यानीकी माया उलट-पुलट गोमूत्र-गायकी मूत्रधार जैसी, अप्रत्याख्यानीकी माया भेड़ (मेढा) के सिंग जैसी और अनंतानुबंधीकी माया बाँसके मूल जैसी है। यहाँ नरकटके तंतुका बाल एकदम सीधा हो जाता है। बादमें तो उत्तरोत्तर अधिक से अधिक वक्र होनेके कारण बड़ी विलंबके साथ साध्य होता है। ____ संज्वलनका लोभ हलदीके रंग जैसा, प्रत्याख्यानीका रंग बैलगाडीकी कीट (काजल) जैसा, अप्रत्याख्यानीका नगर ( शहर )की नाली (मोरी )के कीचड़ जैसा और अनंतानुबन्धीका किरमिज रंग जैसा लगता है। संज्वलनका लोभ हलदी जैसा होनेसे जल्दी दूर होता है। और उत्तरोत्तर रंग अधिक पक्के होनेके कारण अधिक श्रम साध्य है ऐसा समझना चाहिए। _किस कषायसे कौनसा लाभ मिलता नहीं है ?- संज्वैलनका उदय रहता है वहाँ तक यथाख्यात चारित्रका गुण अथवा वीतराग अवस्था, प्रत्याख्यानीके उदयसे सर्वविरति सर्वसावद्यके त्यागस्वरूप चारित्र परिणाम, अप्रत्याख्यानीके उदयसे देशविरति अर्थात् आंशिक त्यागस्वरूप चारित्र परिणाम और अनंतानुबंधीके उदयसे सम्यगदर्शनरूप श्रद्धापरिणामका उदयमान होता नहीं है। - 594. सं =अल्प, थोडा, ज्वलन-जलानेवाला /