________________ .246 * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * है। अलबत्ता इन पुद्गल ग्रहण परिणमनादि क्रियाओंको प्रत्यक्ष देख सकनेकी अपनी ज्ञान शक्तिके अभावसे देख नहीं सकते लेकिन ज्ञानी उन्हें अवश्य देख सकते हैं। विश्व पर कुछ प्राणी ऐसे हैं जो शरीरके साथ बोलनेका तथा विचारनेका बल रखते हैं। जबकि कुछ शरीरबलके साथ बोलनेका बल धारण नहीं कर सकते और कुछ विचारवल मी धारण नहीं कर सकते। अस्तु ! 1. मनोबल-भूत भावीका यथोचित विचार कर सके वैसी शक्ति / अब इस बलका उपयोग किस तरह होता है वह देखें / जब विचार, मनन या चिंतन करना हो तब आत्मा, काययोग (जिसे जो शरीर हो उस शरीरका समग्र भाग ) के आलंबन प्रयत्न द्वारा आकाशमें स्वात्म प्रदेशोंको अवगाहन करके रहे, मनन चिंतनमें उपयोगी (शास्त्रीय भाषामें मनोवर्गणाके) पुद्गल परमाणुओंके स्कंधों-समूहोंको खिचे, फिर जैसा विचार करना हो वैसे विचाररूपमें उसका परिणमन करे-आयोजित करे, जिससे उन पुद्गलोंके आलंबन द्वारा जीव इष्ट विचार करे, इसे मनोयोग कहा जाता है। अब किया हुआ एक विचार पूर्ण होने पर तुरंत ही उन पुद्गलोंको आत्मा काययोग द्वारा ही पुनः छोड देती है और दूसरे विचारोंके लिए पुनः पूर्वोक्त प्रकारके नये पुद्गलोंको पूर्वोक्त रीतसे ग्रहण करती है। छोडे गये वे पुद्गल परमाणु शीघ्र या देरसे पुनः विश्वके वातावरणमें फैल जाते हैं। यहाँ काययोग द्वारा पुद्गल ग्रहण होते हैं और मनोयोग द्वारा मनके पुद्गलोंका परिणमन, आलंबन, व्यापार और विसर्जनकी क्रियाएँ होती हैं। तीनों बल-योगमें पुद्गल ग्रहण काययोग द्वारा ही होता है। फिर वे योग अपने कार्यके लिए अपनी रीतसे उन पुद्गलोंका उपयोग-प्रक्रियाएँ करते हैं। यह मन दो प्रकारका है। 'द्रव्य' और 'भाव' / चिन्तन-मननकी विचारणाके लिए ग्रहण किये गए, अनुकूल ( जिसे विचार करना हो उसके अनुरूप ) आकार रूपमें परिणत, मनोवर्गणाके जो पुद्गल द्रव्य उन्हें 'द्रव्यमन' कहते हैं। और ग्रहित पुद्गलोंकी मददसे जो विचार उत्पन्न हुआ अर्थात् जो मनोविज्ञान हुआ उसे 'भावमन' कहा जाता है। द्रव्यमनके आलंबनके बिना जीव स्पष्ट विचार नहीं कर सकता। ऐसे दोनों प्रकारके मन गर्भज पंचेन्द्रिय तियेच मनुष्यों के होते हैं। और ऐसे जीव शास्त्रमें 'संज्ञी' नामसे. परिचित हैं।