________________ * बंधे हुए आयुष्य किन सात कारणोंसे खंडित होते हैं वह * * 207 . लिए नियम कि, भोगे जाते आयुष्यके छः महीने शेष रहे तब परभवका आयुष्य बांधे। एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और अनपवर्तनीय आयुष्यवाले तिर्यंचमनुष्य अपने निश्चित हुए आयुष्यके तीसरे भागका परभवायुष्य बांधे / लेकिन अपवर्तनीय आयुष्यवाले तिर्यच-मनुष्य अपने निश्चित किए गए आयुष्यके तीसरे भागका परभवायुष्य बांधे। एकेन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रियवाले तियेच-मनुष्य हैं वे अपने आयुष्यके तीसरे तीसरे भागका बांधे / अगर पहला तीसरे भागका न बांधे तो उसके बादका तीसरे तीसरे भागका बांधे अर्थात् नवे भागका, सताइसवें भागका बांधे। इस तरह आगे समझ लेना। 2. अबाधाकाल-परभवका आयुष्य बांधनेके बाद वह बंधा आयुष्य जब तक उदयमें न आया हो तब तक वह बंध-उदयके बिचका अपान्तरकाल। 3. अंतसमय -आयुष्यकी पूर्णाहुतिका अन्तिम (निष्ठा ) समय वह / 4. अपवर्तन - लम्बे काल पर वेदने-भोगने योग्य आयुष्य कम कालमें भोगने योग्य बने वह / यह आयुष्य सोपक्रम भावका ही होता है। 5. अनपवर्तन-जो आयुष्य कभी अल्प न बने। जितना बांधा हो उतना पूरा हो ही वैसा आयुष्य। 6. उपक्रम -दीर्घ आयुष्यको चाहे उस प्रकारसे संक्षिप्त-अल्प करे वह / ऐसे उपक्रम अनेक होने पर भी उनका वर्गीकरण करके उपक्रमोंका सातमें समावेश. करके यहाँ बताये हैं। इन उपक्रमोंका वर्णन ऊपर हो गया है। 7. अनुपक्रम -जिस आयुष्यको कभी उपक्रम अर्थात् किसी भी प्रकारसे धक्का-हरकत न पहुँचे और पूरा पूरा भोगा जा सके वह / इसमें कभी उपक्रमका प्रसंग बन जाए लेकिन वह सिर्फ उपस्थित होने के लिए होता है। परंतु वह आयुष्यकी जीव-डोरीको कभी अल्प नहीं कर सकता / [337] . अवतरण-किसी भी जीवको जीवन जीनेके लिए छः शक्तियोंकी आवश्यकता होती है। जनमते ही अल्प समयमें अपने अपने कर्मानुसार अपने अपने योग्य शक्तियोंका प्रादुर्भाव हो जाता है। यह शक्ति वही पर्याप्ति / पर्याप्ति या शक्ति एक ही शब्दके वाचक शब्द हैं। अब . यहाँ गाथामें छः पर्याप्तिओंके नाम बताकर किस किस जीवको अपने कर्मानुसार कितनी कितनी पर्याप्तियाँ-जीवन शक्तियाँ प्राप्त होती हैं यह भी कहेंगे।