________________ * ऋजु और वकागतिमें मायुष्योदय और आहार कब?. .189. - - पहुँचता है अतः वहाँ एक मोड बढे और एक समय मी बढे। इस तरह "पांच समयको चतुर्वका गति हुई। इस तरह वक्रागतिका स्वरुप कहा। ___ अब मूल गाथाका अर्थ कहा जाता है। यह गाथा निश्चयनय से और व्यवहारनय से (अथवा सूक्ष्मदृष्टि या स्थूलदृष्टि) इस गतिमें परभवके आयुष्यका ! उदय और आहार कब होता है यह बताते हैं। ऋजुगतिमें तो जो संसारी जीव हैं उनके लिए तो प्रथम समय पर ही आयुष्योदय और प्रथमसमय पर ही आहार कहा / अतः इन दोनों बातोंमें एक भी समयका अंतर नहीं पड़ता, क्योंकि समयांतर हो तो आहार लेना पडे लेकिन इस गतिचालेको तो एक ही समयमें उत्पन्न होनेका अर्थात् जिस समय मृत्यु हो उसके दूसरे ही समय पर उत्पन्न हो जाए। साथ ही पूर्वभवके शरीर द्वारा अंतिम समय पर आहार ग्रहण किया है और उसके बादके समय पर ही उत्पन्न होते ही वहाँ उत्पत्तिस्थानमें योग्य आहार कर लेता है। अर्थात् इस गतिवाले संसारी जीव सदा आहारी ही होते हैं / यह वात व्यवहारनयसे घटित है / निश्चयनयसे अर्थात् अधिक सूक्ष्मता और चौकसाईसे सोचे तो परभवके प्रथम समयमें ही पूर्वशरीरका परिशाट-त्याग होता है। जिस समय पर सर्वात्मप्रदेशों द्वारा पूर्व शरीरका परित्याग हो उसी समय जीवकी परभव गति होती है और उसी आद्य क्षणों परभव के आयुष्यका उदय होता है। अतः शरीरान्त और नूतन शरीर प्राप्तिका कार्य उसी समय युगपत् होता है। ... चक्रागतिमें आयुष्य उदय और आहार कब ? . ऋजुगतिकी बात की, अब वक्रगतिमें जाते जीवको परभवायुष्यका उदय कब हो ? तो द्वितीय समयमें होता है ऐसा गाथाकार कहते हैं। . परंतु यह कथन स्थूल व्यवहारनयसे है अर्थात् इस नयसे कथन करनेवाले पूर्व भवके अन्तसमयको ( अभी शरीर त्यागका जो एक समय बाकी है, जो वक्रामें गया नहीं है तो भी ) वक्रागतिका प्रारंभ हो गया होनेसे और वक्रागतिके परिणामाभिमुख हुआ होनेसे उस अन्तसमयको ही कुछ लोग व्यवहारसे वक्रगतिका आदि समय मान लेते हैं और इसीलिए उनके मतसे भवान्तरके आद्य समय पर अर्थात् [ पूर्वभवके अन्त समयकी ___482. यह पांच समयवाली वक्रा बहुत अल्प जीवाश्रित होनेसे बहुत स्थल पर उसकी विवक्षा नहीं की जाती।