________________ * 178 . . श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . . . ऊपर उदाहरण दिया उसके अनुसार, एक जीव सौ साल तक चल सके उतने आयुष्यके पुद्गल बांधकर अवतरित हुआ और पांच वर्षकी उम्र होने पर किसी उपद्रव या अकस्मातकी वजहसे हार्टफेल हुआ और पाँच वर्षमें ही मृत्यु हुई; तब इस जीवने कालायुष्य पूर्ण न किया, कालके 95 वर्ष पडे रहे, लेकिन इस तरह 95 वर्ष भोग सके इतने पुद्गल उस समय पडे रहते क्या ! हरगिज नहीं। आयुष्यका एक मी पुद्गल या परमाणु शेष रहता ही नहीं, संपूर्ण भोगा ही जाता है, क्योंकि प्रथम ही कह दिया कि ट्रयायुष्यका अपवर्तन अर्थात् फेरफार हो सकता है / .लेकिन एक ख्याल निश्चितरूपसे समझ रखना कि आयुष्यमें हानिका फेरफार शक्य है लेकिन वृद्धिका नहीं / ____ अब कालायुष्यमें कोई उपद्रव या अकस्मात रुकावट न करे तो तो सौ वर्ष पूरा करके ही मृत्यु पाए और उस समय व्यायुष्य सौ वर्ष तक भोगा जाए तथा कालायुष्य भी उतने ही वर्ष तक भोगा जाए, इस कालायुष्यको अनपवर्तन कहा जाए। __शंका-आयुष्यके पुद्गलोंका क्षय हुआ और स्थिति-समयका क्षय न हुआ तो सौ वर्षकी स्थिति तक चले इतने पुद्गलों को जीव पांच वर्षमें, अरे ! अंतर्मुहूर्तमें किस तरह भोग डाले ! : समाधान-ऊपरकी शंकाका समाधान यह कि, जैसे एक दीपमें तेल भरा हो, ज्योति धीरे धीरे जलती हो तो, वह दीपक यथासमय जलना पूर्ण कर दे लेकिन कोई मनुष्य उस दीपककी लौ को अधिक प्रज्वलित करे तो दीपकका जलना शीघ्र पूर्ण हो जाता है तथा तेलका संपूर्ण क्षय हो जाता है। उस समय तेल संपूर्ण उपयोगमें आ जाने पर मी दीपक जल्दी जल गया ऐसा बोलते हैं। और दूसरा दृष्टांत यह कि एक 100 हाथ लम्बी डोरी सीधी सारी रक्खी है। इस डोरी को कोई एक छोर पर जलावे तो वह धीरे धीरे जलती हुई उसके नियमानुसार योग्य समय पर जल जाए, लेकिन उसी 100 हाथकी डोरीको अगर गोल लपेटकर जलाया जाए तो तो बहुत कम समयमें जलकर खत्म हो जाए / ___ ऊपरके दृष्टांतोंके अनुसार आयुप्यमें घटा लेना चाहिए कि- सौ बरसका अनपवर्तनीय आयुष्य बांधकर आया जीव समय समय पर क्रमशः आयुष्यके कर्म पुद्गलोका क्षय 475. यहाँ भिगोई दो धोतीका तथा बंधी और अलग ऐसी घासकी गंजीका भी दृष्टांत घटाया जाता है।