________________ ज्योतिषीदेवका जघन्य उत्कृष्ट आयुष्य ] गाथा 5-7 [ 57 अधिपति तथा नक्षत्र-विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपमके आधे भागका होता है और तारेके अधिपति और तारा-विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट आयुष्य है पल्योपमका है। ___ ज्योतिषी निकायकी देवियोंकी क्रमशः उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति पूर्वकथित चन्द्रेन्द्र तथा सूर्येन्द्र तथा ग्रहाधिपति इन तीनों तथा इन सर्व विमानवासी देवोंकी देवियोंका आयुष्य अनुक्रमसे आधे भागका जाने अर्थात् चन्द्रेन्द्र तथा चन्द्र-विमानवासी देवोंकी देवियोंका उत्कृष्ट आयुष्य आधा पल्योपम और पचास हजार वर्ष ऊपर होता है। सूर्य-विमानके सूर्येन्द्र तथा सूर्य-विमानवासी देवोंकी देवियोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति आधा पल्योपम और ऊपर पांचसौ वर्षप्रमाण होती है / तथा ग्रहाधिपतिकी देवीका. तथा ग्रह-विमानवासी देवोंकी देवियोंका उत्कृष्ट आयुष्य आधे पल्योपमका होता है। . नक्षत्राधिपति तथा नक्षत्रके विमानवासी देवोंकी देवियोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपमका चौथा भाग और उसके ऊपर कुछ अधिक होता है। और ताराके अधिपति और ताराके विमानवासी देवोंकी देवियोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपमका आठवाँ भाग और ऊपर कुछ विशेष प्रमाण होता है / ____इस प्रकार ज्योतिषी निकायके देवोंके पांचों युगलोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति कही गई / अब . ज्योतिषी निकायके पांचों युगलोंकी जघन्यस्थिति ज्योतिषी देव पांच प्रकारके हैं, उनमें चन्द्र और सूर्य ये दो तो स्वयं इन्द्र हैं और उनके पास इन्द्रके समान सर्व रिद्धि-सिद्धि होती है। अपने नामके अनुसार ही उनके विमानोंकी पहचान है। शेष तीनों विमानोंमें अधिपति होते हैं। 'दो इन्द्र तथा तीन अधिपति' ऐसे इन पांचोंका जघन्य तथा मध्यम आयुष्य है ही नहीं। उनसे वर्जित उन पांच प्रति (1) प्रथम चन्द्रके विमानवासी देव और उन देवोंकी देवियोंका, (2) सूयके विमानवासी देव और उन देवोंकी देवियोंका, (3) ग्रहके विमानवासी देव और उन देवोंकी देवियोंका, (4) नक्षत्रके विमानवासी देव और उन देवोंकी देवियोंका, इस तरह उन चारों युगलोंका जघन्य आयुष्यप्रमाण एक पल्योपमका चौथा भाग होता है और पांचवें ताराके विमानवासी देव और उन देवोंकी देवियोंका जघन्य आयुष्य एक पल्योपमके आठवें भाग जितना होता है। कृ. सं. 8.