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________________ * आभ्यन्तर योनिका विविध स्वरूप... * 169 येः शय्याएँ देवदुष्य वस्त्रोंसे आच्छादित होती हैं। यह देवशय्या और आच्छादित देवदुष्यः वस्र, दोनों के अंतरमें देवोंका उपपात होता होनेसे वे आच्छादित रूपमें उत्पन्न होते हैं, अतः वह संवृतयोनि कहलाती है। इस तरह एकेन्द्रियोंकी संवृतयोनि तो स्पष्टं पहचानी नहीं जाती, अतः अस्पष्टयोनि भी संवृत ही गिनी जाती है / सातों नरकोंकी संवृतयोनि ऊपरसे अच्छी तरह आवृत्त गवाक्षकी कल्पनासे समझमें आ सकता है, क्योंकि नारको गवाक्षके अंदर ही (नरकावासमें) उत्पन्न होते हैं अतः ऊपरसे आच्छादित योनिवाले हैं / विवृतयोनि किस तरह ? विकलेन्द्रिय अर्थात् दोइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय इन तीनोंकी विवृतयोनि हैं। जलाशयादिके स्थानोंकी तरह वह स्पष्ट खुली दीखती ही है। . १७२संवृत-विवृत किस प्रकार ?-आच्छादित और प्रकट अथवा स्पष्ट-अस्पष्ट रुपमें हो उसे मिश्रयोनि भी कह सकते हैं, / वह गर्भज पंचेन्द्रिय तिथंच तथा मनुष्योंकी संवृतविवृत योनि है, जब ये जीव उदरमें गर्भरूप में उत्पन्न होते हैं तब गर्भ दीखता नहीं है, अतः गर्भ संवृत होता है, परंतु बाहर उदर वृद्धि आदि द्वारा अनुमान हो सके इसलिए वह विवृत है। इन्हें आभ्यन्तर योनियाँ समझना / बाह्य लिंगाकार योनिस्वरूप तो ग्रन्थकार आगे कहनेवाले हैं। [ 323 ] / अवतरण- अब चारों गतिमें से कौनसी जीवायोनि सचित्त, अचित्त या मिश्र तथा शीतोष्णादिपनसे है ? यह कहते हैं। यहाँ कहा जाता स्वरूप आभ्यन्तर योनिका समझना / बाह्य योनिका स्वरूप गाथा 325 में कहेंगे / * अचित्तजोणि सुरनिरय, मीस गम्भे तिभेअ सेसाणं / ' .. सीउसिण निरय सुरगन्भ, मीसे ते उसिण सेस तिहा // 324 // गाथार्थ-देवों और नारकोंकी अचित योनि, गर्भज जीवोंकी मिश्रयोनि तथा शेष जीवोंकी सचित्त, अचित्त और सचित्ताचित्त इन तीन भेदोंसे तथा पुनः मिश्रयोनि, शीतयोनि तथा उष्णयोनि इस तरह तीन प्रकार स्पर्शकी दृष्टिसे है। इनमें नारकों, देवों तथा गर्भज जीवोंकी मिश्र [शीतोष्ण ], तेउकायकी उष्णयोनि तथा शेष जीवोंकी शीत, उष्ण और शीतोष्ण इस तरह तीनों प्रकारकी है / // 324 // .. . .... 472. तीसरी योनिसे उत्पन्न हुए जीव अल्प, दूसरोसे असंख्यगुने उनसे अयोनिज-अर्थात् सिद्धके जीव अनन्तगुने, और उनसे प्रथम योनि उत्पन्न अनन्तगुने हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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