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________________ .139. * पन्न, द्रह और वनस्पतिका मान किस तरह घटे ? . उस्सेहंगुलजोअण-सहस्समाणे जलासए नेयं / तं वल्लि पउमपमुह-अओ परं पुढवीरूवं तु // 295 // गाथार्थ-उत्सेधांगुलसे हजार योजन मानवाले जलाशयोंमें वह वेल, पद्म-कमल प्रमुख [ प्रमुख शब्दसे वैसे वनस्पतिरूप अन्य कमलादिक ] जानें / इससे [ अधिक मानवाले जहाँ हों वे ] दूसरे सर्व पृथ्वीकायरूप जानें / // 295 // विशेषार्थ-यहाँ उत्सेधांगुल क्रमशः साथमें रक्खे आठ नौ के बिचके भागकी जितनी लंबाई हो वह / और उस उत्सेधांगुलको चारसौ गुना करने पर एक ही प्रमाणांगुल होता है / इस उत्सेधांगुलमें हजार योजन गहराईवाले वे-समुद्र, द्रहादिगत आए हुए ४४°गोतीर्थादि जलाशयोंमें ये साधिक हजार योजन प्रमाणवाले प्रत्येक वनस्पतिस्वरूप लता, कमल आदि सोचें / [पूर्व गाथा के 'अहियं जोयणसहस्सं' इस पदसे अधिकत्व कितना ले ! तो ( हजार योजन जलकी गहराई और ) जलसे कमल जितना ऊँचा रहे उतना ] जहाँ उत्सेधांगुलसे नहीं लेकिन प्रमाणांगुलसे निष्पन्न हजार योजन गहरे समुद्रादि स्थानोंमें कमलोंका अस्तित्व हो वहाँ उन कमलोंको (पृथ्वीकायके जीवोंसे ) पृथ्वीकाय स्वरूप ही सोचें / आकार तो सारा कमल जैसा होने पर भी वे वनस्पतिकायरूप नहीं होते अर्थात् वे पृथ्वीकायके जीवोंके शरीरसे ही बने होते हैं / जैसे प्रमाणांगुल निष्पन्न 10 योजन गहरे पद्मद्रहमें श्रीदेवीका कमल पृथ्वीकायस्वरूप है वैसे / क्योंकि शरीरका माप उत्सेधांगुलसे नापनेका कहा है / समुद्रमें उत्सेधांगुलसे हजार योजन गहराईवाले स्थलमें गोतीर्थादि [ हजार योजन गहराईवाले ]. स्थान भी आए हैं। तत्रवर्ती कमलो पृथ्वीकाय तथा वनस्पतिकाय इस तरह दोनों प्रकारके सोचें, अतः इस शेष गोतीर्थादि स्थानकमें मी पूर्वोक्त गाथामें कहा गया ४७'वल्ली-पद्मप्रमुख प्रत्येक वनस्पतिका साधिक हजार योजनका अवगाह सोचें। साथ ही अढाईद्वीपके बारह हजार योजन जितनी बड़ी बड़ी लताएँ भी हैं / [295] ___ अवतरण-एकेन्द्रियकी अवगाहना कहकर, अब दोइन्द्रियसे लेकर तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवोंके नामग्रहणपूर्वक क्रमशः देहमानके बारेमें कहते हैं / 440. गोतीर्थ-अर्थात् जलमें रहा ऊँचा ऊँचा चढता तालाबकी तरह ढालवाला (बैठी हुई गायके आकर जैसा) भाग। 441. जोयणसहस्समहिअं और उस्सहंगुलओ० इत्यादि 'विशेषणवती' की गाथाएँ साक्षी देती हैं।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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