________________ * 134 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . यह सारी पृथ्व्यादिककी स्थिति पर्याप्ता-अपर्याप्ताकी विवक्षा रहित समझना। पर्याप्ता अपर्याप्ताकी पृथक् पृथक् समझ गत गाथाकी टिप्पणीमें दी है। . विकलेन्द्रियकी कायस्थिति दोइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय तथा चउरिन्द्रिय इन तीनोंकी ओघसे स्थिति सोचें तो संख्यात सहस्त्र वर्षों की है। अब यदि प्रत्येककी पृथक् पृथक सोचें तो पर्याप्ता दोइन्द्रियकी उत्कृष्ट संख्याता वर्षकी [ संख्याता हजार वर्ष नहीं क्योंकि दोइन्द्रियकी उत्कृष्ट भवस्थिति ही 12' वर्षकी है और जब लघुमान-प्रमाणवाले उसके अमुक भव सतत हों तो संख्याता वर्षोंकी ही ] कायस्थिति है / त्रिइन्द्रियकी संख्याता दिवसोंकी तथा चउरिन्द्रिय जीवोंकी संख्याता मासकी [ क्योंकि पूर्वोक्त रीतसे दिवस-मासकी न्यून प्रमाणवाली भवस्थिति होनेसे भव-.. संख्या आश्रयी ] कायस्थिति सोचना। पंचेन्द्रियकी कायस्थिति पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा पंचेन्द्रिय मनुष्योंकी भी उत्कृष्ट कायस्थिति सात अथवा आठ भवकी होती है। इन भवोंके वर्ष कितने हों ? तो सात आठ भवका काल. एकत्र करें, तो तीन पल्योपम और [ पूर्वकोटी पृथक्त्वसे अधिक ] सात पूर्व कोटी वर्ष अधिक हो इसलिए उतनी कायस्थिति भी कहलाए / [क्योंकि संख्याता वर्षके आयुष्यवाले गर्भज मनुष्य तथा तिर्यचोंमें जीव पूर्व कोटीके आयुष्यमानमें उत्कृष्ट सात बार उत्पन्न हो और आठवीं बार उत्पन्न हो तो युगलिकपनसे ही उत्पन्न हो, तत्पश्चात् अन्य योनिमें भवका परावर्तन होता है, अतः पूर्वोक्त कायस्थिति संभव होती है।। और आठवाँ भव कहा तो वह आठवाँ भव, सातके बाद होता है सही, परंतु वह संख्यवर्षका नहीं लेकिन अवश्य असंख्य वर्षके आयुष्यवाला युगलिक-मनुष्य अथवा तिर्यच पंचेन्द्रियको और वहाँ उतना आयुष्य पूर्ण करके नवें भवमें देवरुपमें अवश्य उत्पन्न होता है। अतः आठवें भवकी असंख्य वर्षायुष्यस्थिति उन तीन पश्योपमके मानवाली ही होनेसे तीन पल्योपम वे, और उसके पहले पूर्वकोटी वर्षके मानवाले सात भव करें, दोनों स्थिति एकत्र होने पर तीन पल्योपम तथा सात पूर्वकोटी वर्षकी कायस्थिति आ जाए। संमूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति [पूर्वकोटी पृथक्त्व ] सात पूर्व करोड वर्षकी है, क्योंकि संमूच्छिम मर मरकर पुनः पुनः संमूच्छिम तिर्यचमें उत्पन्न हों तो पूर्वकोटी प्रमाण कायस्थितिवाले यावत् सात भव तक उत्पन्न होते हैं। [ परंतु अगर आठवाँ भव करना हो तो गर्भज रूपमें तथा असंख्य वर्षकी स्थितिवाले तिर्यंचमें करें और फिर देवभवमें जाएँ।]