________________ // सिद्धस्थानाश्रयी यंत्र // त्रिवेद लिंग अवगाहना समयसिद्धि ऊर्वलोके अधोलोके तिर्यक्लोके संकान्तवेद उ०विरह च्य०वि० कालाश्रयी सिद्ध शिलामान सिद्धावगाहना 108 भाग 2 / / / / 2 हाथ मध्यमा स्त्री न० / नन्दनवनमें प्रतिविजय | अकर्मभूमि उ० जघ० जघन्मान मध्यमें 2010 ज० I म० 20 / 10 6 मास 1 समय अंगुल 8 योजन पुलिंग 108 कर्मभूमि असंख्य मोटी पांडुकादिसे च्यवन हेतु 500 | ध० नो भांगेमें नहीं है उत्कृष्ट अधो| ग्राम सादि अनंत उत्कृष्ट मान | पुरुष से पुरुष शेष 8 भागमें स्थिति है। 45 लाख योजन अर्धचन्द्राकार 22 40 108 अर्जुनसुवर्णमय गृहस्थ० अन्यलिंगमें उत्सर्पिणीकालमें | अवसर्पिणीकालमें 4 / 10 समुद्रसे शेषजलाशयोंसे स्वलिगमें शेष चौथेमें शेष आरेमें 108 तीसरे आरेमें आरेमें 8 स०-७स०-६स०-५समय ४समय-३स०-२स०-१समय समय पर 10 जवन्यमान | मध्यममान 108 संख्या 10 संख्या संख्या 2 हाथ ४हाथ १६अं० 1 से 32 103 से 108. 1 समयमें 1 समयमें | 20 संख्या 8 अंगुल या मध्यम संख्या जीव सर्वस्थिति जीव संख्या 108 जीवकी संख्या . उत्कृष्टमान 33 से 48 97 से 102 3333 धनुष 49 से 60 'सूची :- सिद्धस्थान भी उपचारसे गतिरूप होनेसे प्रासंगिक उसके भी भवन, च्यवन 85 से 96 विरह संख्या,आगति इन तीन द्वारोको छोड़कर सर्व द्वारोंका वर्णन किया, इनके सिवायके अधिक - 61 से 72-73 से 84 भेदोंका तथा अन्य वर्णन ग्रन्थान्तरसे देख लेना /