________________ * सिद्ध हुए जीवोंकी जघन्य अवगाहनाका वर्णन * वे सिद्ध होनेवाले जीव मृत्युके समय सोते-बैठे-खडे, सीधे-उलटे या संक्षिप्तमें जिस जिस अवस्थामें रहकर काल पाए, वैसे ही संस्थानमें, उसी आकारमें, सिद्धस्थानमें उत्पन्न होते हैं / साथ ही अंतिम समयमें पोलापन पूरित होनेसे अनिश्चित आकृतिवाला प्रदेशघन होता होनेसे उस संस्थानको ( घटाकाशकी तरह ) निश्चित नाम दिया नहीं जा सकता, इसीलिए सिद्ध के जीवोंको दीर्घ-हस्व संस्थान नहीं है, साथ ही अशरीरी होनेसे वृद्धित्व नहीं है / [ 282 ] (क्षेपक गाथा 68) अवतरण—अब सिद्धोंकी जघन्य अवगाहनाका वर्णन करते हैं / एगा य होइ रयणी, अद्वेव य अंगुलेहिं साहीया / एसा खलु सिद्धाणं, जहन्न ओगाहणा भणिया // 283 // ___(प्रक्षेपक गाथा 69) गाथार्थ-एक हाथ और आठ अंगुल अधिक जितनी सिद्धोंकी जघन्य अवगाहना कही है // 283 // विशेषार्थ-दो हाथ की कायावाला संसारी जीव पूर्वोक्त गाथामें कहे नियम अनुसार शुषिर भागोंको पूर कर प्रदेशघन करे तब दो हाथका तीसरा भाग हीन होनेसे शेष 1 हाथ और 8 अंगुल अवगाहनावाला रहता है / और फिर तुरंत सिद्ध हो तव ( तेज अवगाहनामें सिद्धात्माएँ सिद्धस्थानमें उत्पन्न होनेसे) 1 हाथ अधिक 8 अंगुल 'सिद्धोंकी जघन्य अवगाहना निश्चयरुपमें होती है / [ 283 ] (क्षेपक गाथा 69) // इति मनुष्याधिकारः समाप्तः, तस्मिन् समाप्ते तस्य अष्टद्वाराण्यपि पूर्णानि // 423. भिन्न भिन्न आकार ग्रहणमें कारणभूत कर्म है / अब मुक्तिगामी आत्मा कर्महीन हुई होनेसे नया आकार ग्रहण करानेवाली कर्मसामग्री रही नहीं है अतः अंतिमभवमें अन्तसमयमें जिस आकारमें मरे उसी आकारवाले आत्मप्रदेशोंसे सिद्धस्थानमें स्थिर हो जाए / 424. कूर्मापुत्रवत् अथवा सात हाथके मानवाले यन्त्रपीलनसे संकुचित हुए हों उनकी /