________________ * सिद्ध हुए जीवोंकी उत्कृष्ट तथा मध्यम अवगाहना * 107. अवतरण- उस सिद्धशिलाकी मोटाई कितनी ? यह कहते हैं / बहुमज्झदेसभाए, अट्ठव य जोयणाई बाहल्लं / चरिमंतेसु य तणुई, अंगुल संखेज्जई भागं // 281 // [प्रक्षेपक गाथा 67] गाथार्थ-यह सिद्धशिला बराबर मध्यमें, लंबाई चौडाईमें आठ योजन जितने घेरेके भागमें ऊपरसे नीचे तक आठ योजन मोटी है / तत्पश्चात् उस मोटाईको सर्व दिशा-विदिशाओं में एक एक प्रदेशमें (और योजनान्तमें अंगुल पृथकत्व प्रमाण ) हीन करते करते यावत् शिलाके अन्तिम भागमें पहुंचने पर अंगुलके असंख्यातवें भाग जितनी पतली हो / अर्थात् मक्खीके पंखसे भी अधिक पतली होती है / // 281 // विशेषार्थ:-सुगम है / [ 281 ] ( क्षेपक गाथा 67) अवतरण-सिद्ध हुए जीवोंकी उत्कृष्ट तथा मध्यम अवगाहना कहते हैं / .तिनि यो तित्तीसा, धणुत्तिभागो य कोसछन्भागो / जं परमोगाहोऽयं, तो ते कोसस्स छन्भागो / / 282 // [प्रक्षेपक गाथा 68] गाथार्थ-तीनसौ तेतीस धनुष और एक धनुषका तीसरा भाग, यह प्रमाण एक कोसके छठे भागरूप होनेसे, दूसरे शब्दमें एक कोसके छठे भागकी सिद्धोंकी उत्कृष्ट अवगाहना है / विशेषार्थ-सिद्धगतिमें जानेवाले जीव मनुष्यभवमें उत्कृष्ट से 500 धनुषकी * अवगाहनावाले ( अतः "अधिक शरीरी नहीं) और जघन्यसे दो हाथकी अवगाहनावाले (अतः न्यून शरीरी नहीं) तथा जघन्यसे आगे और उत्कृष्टसे अर्वाक्-अंदरके सर्व . 419. यह गाथा संग्रहणी टीकामें दी है / 420. कोई उत्कृष्टसे 525 धनुष अवगाहना मानता है क्योंकि सिद्धप्राभूतमें भी उ० अवगाहना सिद्धोंकी 500 धनुष पृथकत्वमें कही है, वहाँ पृथक्त्व शब्द बाहुल्यवाची होनेसे यहाँ 25 धनुष अधिक गिनते हैं / 421. शंका-५०० धनुषकी ही कायावाला मोक्षमें जाए तो 525 धनपकी कायावाली मरुदेवा माता कैसे मोक्षमें गई। . समाधान-उत्तम संस्थानवाली स्त्रियों के लिए सामान्य स्थिति ऐसी होती है कि वह उस कालके योग्य संस्थानवाले पुरुषसे कुछ न्यून प्रमाणकी होती है / इस हिसाबसे जब मरुदेवाके पति नाभिकुलकर 525 धनुष थे, तब मरुदेवा को कुछ न्यून प्रमाण मानें तो 500 धनुषके ही वास्तवमें समझना चाहिए। दूसरा खुलासा भाष्यकारने यह किया है कि- मोक्षमें गई तब मरुदेवा हाथीके स्कंध पर थीं अतः कुछ