________________ .102. * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर . न्द्रियसे आये, अतः भवस्वभावसे ही सिद्धि प्राप्तके योग्य सामग्री नहीं मिलती, जो आगे बताया जाएगा / ). तीसरी मनुष्यगतिसे आये पुनः मनुष्य होकर 20 जीव एक समय पर मोक्षमें जाएँ / मनुष्य की स्त्रियाँ पुनः मनुष्यत्व पाई हों तो वे भी 20 संख्या पर सिद्ध होती. हैं, इसमें खास कोई भेद नहीं है / ___चौथी देवगतिमें विशेषरुपसे कहते हुए बताते हैं कि-असुरकुमारादिक भवनपतिके दसों निकायोंसे और व्यन्तर निकायमें से निकलकर आये एक समय पर 10 और उन्हीं दोनों निकायोंकी देवियाँ च्यवित होकर मनुष्य बनकर सिद्ध हों तो 5, ज्योतिषी. निकायसे आए 10, और उनकी देवियाँ आई हों वे 20 और चौथे वैमानिकनिकायसे आये उत्कृप्टा एक समयमें 108 और वैमानिककी देवीसे आये मनुष्य होकर एक ही समय पर 20 सिद्ध होते हैं / [ 2753 ] // नरक आदि गतिसे आये जीवोंकी एक ही समयमें ओघ और विशेषसे सिद्ध संख्याका यन्त्र // . गति विभाग नाम 1 समय सिद्धि निर० समय गति विभाग नाम 1 समय सिद्धि समय 1. नरकगतिसे आयेकी ओघमें |10 पहले तीन नरकसे आये चौथे पंकप्रभासे आये शेष 5-6-7 इन तीन न०से आये 2. तिथंच गतिसे आये ओघमें पं. तिर्यचसे निकलकर आये पं. तिर्यचिणी स्त्रीसे आये पृथ्वीकायसे निकलकर आये अप्कायसे निकलकर आये वनस्पतिकाय से निकलकर आये | 3. मनुष्यगतिसे आये ओघमें 4 मनुष्यसे मनुष्य बने मनुष्यनी-स्त्रीसे आये देवगतिसे आये ओघमें x | 1. भवनपतिकी प्रत्येक निकायमेंसे | भव० प्रत्येक निकी देवीसे आ० 4 | 2. व्यन्तरकी प्रत्येक निःसे आ० 4 | व्य० प्रत्येक नि०की देवीसे आ० 5 |3. ज्योतिषीनिकायसे आये ज्योतिषी देवीसे आये 4. वैमानिक प्रत्येक कल्पसे आये 1 वैमानिक देवीसे आये | 4