________________ * किस गतिसे आये मनुष्य एक समय में कितने मोक्ष जाए * * 101 . नरयतिरियागया दस, नरदेवगईओ वीस अट्ठसयं // 2733 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् // 2733 // विशेषार्थ-नरक और तिर्यंचगतिसे निकलकर मनुष्य बने हुए जीव यदि मोक्षमें जानेके योग्य बनकर मोक्षमें जाए तो उत्कृष्टा एक समयमें दस ही जाए। मनुप्यगतिसे मरकर पुनः मनुष्यगति पाये हुए ऐसे एक समयमें 20, देवगतिमेंसे निकलकर मनुष्य बने हुए एक समयमें 108 मोक्षमें जाते हैं। [ 2733] अवतरण-अब किसी भी वेद के नाम ग्रहण बिना ही नारकादि प्रत्येक गतिमेंसे आये हुओं की सामान्य-विशेष से होती सिद्धि के बारेमें कहते हैं / दस रयणासकरवालुयाउ, चउ पंकभूदगओ // 274 // * छच्च वणस्सइ दस तिरि, तिरित्थि दस मणुअवीसनारीओ / असुराइवंतरा दस, पण तद्देवीओ पत्ते // 275 // जोइ दस देवी वीस, विमाणि अट्ठसय वीस देवीओ // 2753 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् // 274-2753 / / विशेषार्थ--अब गत गाथामें जिस तरह 'नरकगति' ऐसे सामान्य शब्द का प्रयोग किया जिससे सातों नरक का ग्रहण न हो जाए इसलिए सर्व भ्रमको टालनेको यह गाथा बताती है कि-'नरक शब्द ' से प्रथम के चार ही समझना, जिनमें रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और वालुकाप्रभा इन तीन नरकोंसे आए मनुष्य होकर एक समय पर दस सिद्ध हो जाए और चौथे पंकप्रभा से चार जीव मोक्षमें जाते हैं, परंतु धूमप्रभादि अंतिम तीन नरकसे आये हुओंको अनन्तर भवमें सर्वविरतिका उदय नहीं होनेसे उनका निषेध किया है / - अब तियंचगतिमे भी पृथ्वीकाय और अपकायमें से निकलकर आये एक समय पर उत्कृष्टसे चार, तेउ-वाउकाय के लिए तो अनन्तर भवमें ( 264 गाथा में ) मनुष्य प्राप्ति का निषेध बताया होनेसे वे सिद्ध नहीं हो सकते, क्योंकि सिद्धिगमन मनुष्यके सिवा अन्य गतिसे नहीं है / अब वनस्पतिकायसे आये 6, और ( त्रसकायमें ) पंचेन्द्रिय * पुरुष तिर्यचमेंसे या स्त्री तिर्यचमें से आये मनुष्य होकर 10 जाते हैं / (यहाँ विकले 413. सिद्धप्राभृत में तो देवगतिसे आये हुओं को वर्ण्य शेष तीनों गतिसे आए दस दस मोक्षमें जाए ऐसा कहा है। सत्य तो बहुश्रुत या केवलि भगवंत जाने /