________________ * अरिहंतादि कौन सी गति में से आये हुए होते है ? . *79 . गाथार्थ—सातवे नरक पृथ्वी के नारको, तेऊ (अमि)काय के, वायु ( पवन ) काय के जीवो, असंख्य वर्षायुषी ( युगलिक ) मनुष्य-तिर्यंचो अनन्तर भव में मनुष्य होते न होने से उनके सिवा, शेष सर्व दंडक के जीव [ उन छः नारकों के जीवो, देवो, तिर्यचो ] मनुष्य भव में उत्पन्न होते हैं। // 262 / / विशेषार्थ-सुगम है / [ 262 ] अवतरण-इस गतिद्वार में ही विशेष स्पष्टीकरण करने पर मनुष्यलोकमें होनेवाले बहन चक्रवर्ती आदि महापुरुष कहाँसे च्यवन पाकर आनेवाले होते हैं ? इस की विशेषता बताते हैं / सुरनेरइएहिं चिय, हवंति हरि-अरिह-चकि-बलदेवा / चउविह सुर चक्किबला, वेमाणिअ हुंति हरिअरिहा // 263 // गाथार्थ-वासुदेव, अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, मनुष्यो निश्चयपूर्वक देव-नरकगतिमें से ही आए होते हैं / उनमें चक्रवर्ती तथा बलदेव हैं वे चारों प्रकारके देवनिकायों में से आए हुए और वासुदेव तथा अरिहंत वैमानिकनिकाय में से ही आए हुए होते हैं / // 263 // विशेषार्थ-गाथा में बताया कि अरिहंतादिक महापुरुषो अवश्य देव तथा नरक में से आए होते हैं उनमें किस नरक में से कौन कौन होते हैं ! यह तो नरकगति अधिकार में कहा है। अब देवलोक के किस किस स्थान से कौन कौन होते हैं ! तो - भवनपति-व्यन्तर-ज्योतिषी और वैमानिक, इन चारों निकायों में से च्यवन हुए हों वे बलदेव या चक्रवर्ती (दो ही) होते हैं। जिनेश्वर-अरिहंत होनेवाले, एक वैमानिक निकाय में से ही च्यवन पाकर आए होते हैं। और इसी तरह वासुदेव भी ( फक्त अनुत्तर वर्य) वौनिकनिकाय में से ही आए होते हैं / परंतु तिर्यच-मनुष्य में से च्यवन पाये जीव अनन्तर भव में उक्त विभूतियाँ नहीं पाते हैं / [ 263 ] _____ अवतरण-पूर्वोक्त बात पुनः कहकर वासुदेवो तथा चक्रवर्त्यादिक के मनुष्यरत्नो मी कहाँसे च्यवन ( आए हुए ) पाये हो? यह कहने के साथ विशेष हकीकत कहते हैं। हरिणो मणुस्सरयणाई, हुंति नाणुत्तरेहिं देवेहिं / जहसंभवमुववाओ, हयगयएगिंदिरयणाणं // 264 // 389. प्रशापना में नागकुमारनिकाय से वासुदेव हुए ऐसा कहते हैं // ' 390. मनुष्य में से निकले हुए चक्रवर्ती होते हैं ऐसा भी कथन 'आवश्यकनियुक्ति' में है /