________________ है तीसरा मनुष्यगति अधिकार।। ___अन्तर्गत पञ्चमगति [मोक्ष] अधिकार मनुष्याधिकारमें प्रथम और द्वितीय स्थिति, अवगाहनाद्वार अवतरण-इस तरह लगभग 59 गाथाओं से नरक-गति अधिकार में नवों . ' द्वारों का वर्णन कर के अब तीसरे मनुष्यगति अधिकार में 'भवन' सिवाय आठ द्वारों का वर्णन करते हैं, उनमें से ग्रन्थकार प्रथम ‘स्थिति' और दूसरा 'अवगाहना' इन दो द्वारों को कहते हैं / गन्भनरतिपलिआऊ, तिगाउ उक्कोसतो जहन्नेण / मुच्छिम दुहावि अंतमुहु, अंगुलाऽसंखभागतणू // 260 // . गाथार्थ-गर्भज मनुष्य की उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति तीन पत्योपम की और उनकी देह विषयक अवगाहना उत्कृष्ट से तीन कोस की होती है / उनका जघन्य से तथा संमूर्छिम मनुष्यों का जघन्य तथा उत्कृष्ट से भी आयुष्य अंतर्मुहूर्त का और जघन्य से गर्भज मनुष्य की अवगाहना (उत्पत्ति कालाश्रयी ) तथा संमूछिम मनुष्य की उत्कृष्ट और जघन्य दोनों प्रकार की अवगाहना असंख्यातवें भाग की है // 260 // विशेषार्थ-यहाँ से मनुष्यगति का अधिकार शुरू होता है / उस में मनुष्यों के दो प्रकार हैं / संमूच्छिम और गर्भज / इन दोनों को पंचेन्द्रिय समझना / सिर्फ संमूर्छिम को मन न होने से शास्त्र की परिभाषा में ' असंज्ञी' कहा जाता है / जब कि गर्भजों के मन वर्तित होने से 'संज्ञी' (पंचेन्द्रिय) नाम से परिचित है / संमृच्छिम जन्म अर्थात क्या ? कुल तीन प्रकार से जीवमात्र के जन्म होते हैं। 1. संमूर्छिम, 2. गर्भज, 3. उपपात. 1. संमूर्छिम गर्भ की सामग्री के बिना ही जिस की उत्पत्ति हो वह / अर्थात् स्त्री-पुरुष के संयोग के बिना ही उत्पत्तिस्थान में वर्तित औदारिक पुद्गलों को शरीररूप में परिणत करना उसे (उन जीवों के लिए) संमूछिम जन्म कहा जाता है / 382. गर्भज से यह अंतर्मुहर्त अंगुलासंख्य भाग से लघु जाने /