________________ * 34 . * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * अवतरण-अब प्रत्येक नरक में कितनी-कितनी प्रतर संख्या होती हैं ! उसे बताते हैं / तेरिकारसनवसग, पणतिनिगपयरसव्विगुणवन्ना / सीमंताई अपइ-ट्ठाणंता इंदया मज्झे // 219 // गाथार्थ-विशेषार्थवत् / / 219 // विशेषार्थ-देवलोक की तरह सातों नरक में भी प्रतर आये हुए हैं / इन में प्रथम रत्नप्रभा (धर्मा ) नरक पृथ्वी में तेरह प्रतर, [ इस के बाद दो-दो की संख्या कम करते जाने से ] दूसरी शर्कराप्रभा (वंशा) में ग्यारह, तीसरी वालुकाप्रभा (शेला) में नौ, चौथी पंकप्रभा ( अंजना ) में सात, पाँचवीं धूमप्रभा (रिष्टा ) में पाँच, छठी तमःप्रभा ( मघा ) में तीन, और सातवीं तमस्तमप्रभा ( माघवती) नरक पृथ्वी में एक प्रतर आया हुआ है / इस प्रकार कुल मिलाकर उनचास (49) प्रतरो सातों नरक में होते हैं / प्रत्येक नरक के मध्यभाग में इन्द्रक नरकावास आये हुए हैं, जिनमें सीमंत नाम: का नरकावास आदि प्रतर के मध्यभाग में है जब कि अप्रतिष्ठान नरकावास अंतिम प्रतर के मध्य में आया है / [ 219 ] अवतरण--इस के पहले, गाथाओं में यह बताया गया है कि प्रत्येक प्रतर के मध्य--मध्य भाग में इन्द्रक नरकावासा आये हुए हैं। और अब उन्हीं नरकावासाओं के नाम कौन-कौन से हैं ! तो दस गाथाओं द्वारा बताते हैं / सीमंतउत्थ पढमो, बीओं पुण रोरुअत्ति नायव्यो / भंतो उणत्थ तइओ, चउत्थओ होइ उन्भंतो // 220 // संभंतमसंभतो, विभतो चेव सत्तमो निरओ / अट्ठमओ तत्तो पुण, नवमो सीओत्ति णायव्वो // 221 / / वकंतमंऽवकतो, विकतो चेव रोरुओ निरओ। पढमाए पुढवीए, तेरस निरइंदयाँ एए // 222 // थणिए थणए य तहा, मणए वणए य होइ नायव्यो / घट्टे तह संघट्टे, जिन्भे अवजिब्भए चेव // 223 // . ३६३-पाठां.-नामेण / ३६४-इंदया एव बोधव्या /