________________ * 14 * * श्रीबृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * दूसरी अन्योन्यकृत शरीर वेदना शेष छठे तथा सातवें नारकी में शरीर कृत अन्योन्यवेदना होती है इसलिए वहाँ रहनेवाले नारकी स्वयं, वज्रमय मुखवाले लाल रंग के कुन्थुओं तथा ‘गोमय कीटक आदि को ( शरीरसंबद्ध ) विकुर्वकर एक-दूसरे के शरीर को उससे कुतरवाते हैं तथा ईख (गन्ना) के कीटक की तरह शरीर छाननी ( छन्नी, छननी, चालनी) जैसा आरपार कराते हैं तथा शरीर के भीतर आगे-आगे बढाते महागाढ वेदनाओं को परस्पर भुगतते हैं। इस प्रकार अन्योन्यकृतवेदना बतायी / अब शुरु के तीन नरकों में 'परमाधार्मिक' वेदना बताते हैं संक्लिष्ट अध्यवसायवाले परमाधार्मिक जाति के देव पंद्रह प्रकार के हैं / अम्ब, अम्बरिष, श्याम, शवल, रुद्र, उपरुद्र, काल, महाकाल, असिपत्र, धनु, कुम्भी, वालुक, वैतरणी, खरस्वर और महाघोष / वे सभी सान्वर्थ नामवाले हैं / वे नरकात्माओं को अतिदुःख देकर अपना आयुष्य पूर्ण होते ही अपने महापाप कर्म के वश होकर अंडगोलिक स्वरूप उत्पन्न होते हैं / इन्हीं अंडगोलिकों से नारकों को कैसी कैसी वेदनाएँ भुगतनी पडती हैं उसे बताते हैं। वे कभी-कभी गर्म लोहे के रस का पान कराते हैं, कदाचित् तपे हुए धधकते लोहे के खंभे के साथ बलपूर्वक आलिंगन करवाते हैं, कभी-कभी कंटकीय शाल्मलिवृक्ष ( सेमल का पेड ) पर चढाकर कष्ट एवं दुःख देते हैं, कभी-कभी लोहे के बडे हथौडे से कुचल (रौंद ) डालते हैं, कभी-कभी बांस को छुरी से छेदकर उस में क्षारयुक्त गर्म किया हुआ धधकता तैल डालते हैं, तो कभी-कभी लोहे के भाले पर पिरोते है, अमि की भट्ठी में भंजते हैं, तिलकी तरह चक्की में उल्टे मस्तिष्क या उल्टे शरीर 358 प्रथम 'अम्ब' नाम के परमाधामी लोग नारकों को ऊंचे उछालकर नीचे गिराते हैं, दूसरा इन्हें भठे में पका सके ऐसे छोटे-छोटे टुकडे करता है, तीसरा आंतर-हृदय को भेदता है, चौथा उनको काट-कूट करता है, पाँचवाँ भाला या बरछा में पिरोता है, छठा अंगोपांग को तोड डालता है, सातवाँ तलवार की धार जैसे तीक्ष्ण पत्तों का वन बनाकर नारकों को उसमें घुमाता फिराता है, आठवाँ धनुष्य से छोडे गये अर्धचन्द्राकार बाणों से बींधता है, नौवाँ कुंभी में पकाता है, दसवाँ कोमल मांस के टुकडों को कुटता है, ग्यारहवाँ कुंड में पकाता है, बारहवाँ उबलते हुए रुधिर और पीब (पीप, मवाद) से भरी हुई वैतरणी नदी बनाकर उसमें डालता है, तेरहवाँ कदम्ब पुष्प आदि के आकारयुक्त वेलु में पचाता है, चौदहवाँ दुःख से डरे हुए और इधर-उधर भागनेवाले नारकों को चिल्ला-चिल्लाकर, डरा-धमकाकर उन्हें