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________________ अवसर्पिणीकालका वर्णन गाथा 5-6 [41 ये युगलिक अपनी सन्तानोंका निर्वाह पहले आरेमें 49, दूसरे आरेमें 64 और तीसरे आरेमें 79 दिन पर्यंत करते हैं, उसके बाद उन्हें अपत्य-परिपालनकी आवश्यकता नहीं होती। तीसरे आरेके अन्तमें 84 लाख पूर्व और 89 पखवाड़े शेष रहने पर कुलकरोंकी उत्पत्ति होती है, उस नियमके अनुसार इस अवसर्पिणीमें श्री ऋषभदेवजी गर्भमें आये / ___ जब युगलिकोंमें कालक्रमसे ममत्वादि दोष विशेषतः बढ़ जाते हैं, तब कुलकी मर्यादा रखनेवाले जो विशिष्ट पुरुष उत्पन्न होते हैं उन्हें 'कुलकर' कहा जाता है / ये पुरुष 5 परिभाषणादि चार प्रकारकी दंडनीतिका प्रवर्तन करते हैं। तीसरे आरेके अन्तमें श्री ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर स्वरूप उत्पन्न हुए। वे 84 लाख पूर्वका आयुष्य पूर्ण करके तद्भव मोक्षगामी हुए। तीर्थकर श्री ऋषभदेवस्वामीने 20 लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत किये, 63 लाख पूर्व राज्य अवस्थामें और 1 लाख पूर्व श्रमण-साधु पर्यायका पालन कर, तीसरे आरेके 89 पखवाड़े शेष रहे तब सिद्धपदको प्राप्त किया। देशविरति 60 61 सर्व-विरतिकी उत्पत्ति क्षेत्रके कालदोषसे विच्छिन्न हुई वह चालू अवसर्पिणीमें श्री ऋषभदेव प्रभुसे प्रारम्भ हुई और अवधिज्ञान आदिकी भी उत्पत्ति हुई / 2 . पुरुषकी 72 ६३कलाओं तथा स्त्रीकी चौसठ कलाओंका भी उन प्रभुने ही प्रवर्तन 59. तथा चोक्तम्-'दुदु-तिग कुलगरनीई-ह-म-धिक्कारा तओ विभासाई / चउहा सामाईया बहुहा, लेहाइ ववहारो // 1 // हकार, मकार, धिक्कार और फिर शब्दताडन / 60-61 देशसे (अमुक अंशमें ) त्याग वह देशविरति और सर्वांश प्राणातिपात-मृषावाद-अदत्तादानमैथुन-परिग्रहके पापका विरमण-त्याग वह सर्वविरति, देशविरति, पंचमगुणस्थानसे और सर्वविरति छठवें प्रमत्तगुणस्थानसे होती है, देशविरतिवाले श्राद्ध-गृहस्थ होते हैं और सर्वविरतिवाले साधुपुरुष होते हैं / 62. 'अवधि' उस रूपका-पदार्थ विषयक मर्यादावाला ज्ञान / आदि शब्दसे मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञानको भी ग्रहण करना / 'मनःपर्यव' ज्ञान वह दाईद्वीपवर्ती संज्ञी-पंचेन्द्रिय जीवोंके मनोगतभावोंको दर्शानेवाला ज्ञान और केवलज्ञान वह लोकालोकवर्ती अतीत, अनागत और वर्तमानके अनन्त द्रव्यों और पर्यायोंको बतानेवाला ज्ञान / 63. पुरुषोंकी 72 कलाएँ-लिखितं गणितं गीतं नृत्यं वाद्यं च पठनशिक्षे च / ज्योति८.१०. 1 12 13 14 15 16 17 18 श्छन्दोऽलङ्कृति-व्याकरणनिरुक्ति काव्यानि // 1 // कात्यायनं निघण्टुर्गजतुरगारोहणं तयोः शिक्षा / शस्त्राऽभ्यासो
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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