________________ '40 ] बृहसंग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 5-6 दस नाम हैं, जिसका कुछ स्वरूप इस अनुसार है। 1. 'मत्तांग' ५८अर्थात् इस कल्पवृक्षके पास याचना करते ही उसके फल और पुष्प, यहाँके स्वादसे अनेकगुण विशेष स्वादवाली मदिराको तथा आरोग्य-तुष्टि-पुष्टि देनेवाले मधुर रसोंको पूर्ण करनेवाला / .. . 2. 'भृतांग' सप्तधातुके और लकडी आदिके इच्छित प्रकारके सभी तरहके भाजनोंपात्रोंकी पूर्ति करनेवाला कल्पवृक्ष / .. 3. 'तूर्याग' [त्रुटितांग ] इस कल्पवृक्षके फल वीणा, सारंगी आदि सर्व प्रकारके वाद्योंका काम करते हैं। 4. 'दीपशिखांग' जहां ज्योतिरंगका प्रकाश न पड़ता हो, उस स्थानमें दीपकका काम देनेवाले दीपांग कल्पवृक्ष प्रकाश दे रहे हैं / 5. 'ज्योतिषिकांग' प्रकाश देनेवाले ये कल्पवृक्ष सब प्रकारके देदीप्यमान तेजका स्वार्थको सिद्ध करनेवाले होते हैं, इनमें कुछ तो रात्रिके समय किसी महान तेजको देनेवाले होनेसे वहाँके निवासियोंका गमनागमनविहार आदि सुखसे हो सकता है। 6. 'चित्रांग' कल्पवृक्ष चित्र-विचित्र पुष्पोंकी मालाएँ देनेमें उपयोगी है। 7. 'चित्ररसांग' विचित्ररससे युक्त भोजन देनेवाले और साथ ही अनेक प्रकारकी मिठाईयाँ देनेवाले हैं। इस मिठाईका स्वाद चक्रवर्तीके लिए बनती गई मिठाई जैसा होता है / 8. 'मण्यंग' कल्पवृक्ष मणि आदि सर्व प्रकारके आभूषणोंको देनेवाले हैं / 9. 'गृहाकार' कल्पवृक्ष-विविध आकारके इच्छित मंजिलवाले गृहोंके लिए उपयोगी है। . 10. 'अनियत' कल्पवृक्ष-अभावग्रस्त किसी भी प्रकारकी वस्तु की पूर्ति करनेवाले और सर्व प्रकारके वस्त्रादि देनेवाले होते हैं / इस दसवें कल्पवृक्षका 'अनग्न' ऐसा भी नाम है और वह विविध प्रकारके वस्त्र आदि देनेके कारण सान्वर्थ है। और इसलिए युगलिकोंको नग्न रहना पड़ता नहीं है। देवाधिष्ठित नहीं किन्तु, तथा प्रकारके स्वाभाविक प्रभावयुक्त होते हैं / इसके सिवा दूसरी बहुत प्रकारकी उत्तम वनस्पतियाँ भी होती हैं / 58. 'तेसि मत्तंग-भिंगा, तुडिअंगा-जोइ-दीव-चित्तंगा / चित्तरसा-मणिअंगा, गेहागारा-अणिअयक्खा / / ' 'पाणं-भायण-पिच्छण, रवि-पह दीव-पह कुसुममाहारो / भूसण गिह वत्थासण, कप्पदुमा दसविहा दिति // ' [लघु क्षेत्रसमास गाथा 96-97]