________________ * श्री बृहत्संग्रहणीरत्न-हिन्दी भाषांतर * // तीसरी वालुकाप्रभा की स्थिति // प्रतर| जघन्य स्थिति | उत्कृष्ट स्थिति सागरोपम | 3 सा० भाग 3, है भाग // चौथी पंकप्रभा की स्थिति // प्रतर| जघन्य स्थिति | उत्कृष्ट स्थिति | | 7 सागरोपम |7 सा عوام به اه اه ewasan اه 15م ام عام هم اه or an ao s wa vimls 9 Maularl m wwww اه 19 M2 19 1999 مرام دام |९,६१०सा० کرم مام M // पाँचवीं धूमप्रभा नरक की स्थिति // प्रतर जघन्यायुष्यमान उत्कृष्टायुष्यमान 1 10 सागरोपम 11 सा० 2 भाग 11 सा० भाग 12 , , // छठवीं तमःप्रभा नरक की स्थिति // प्र० ज० आ० | उ० आयुष्य 1 | 17 सा० 182 सा० 2 | 18 सा०३ 203 सा. 3 | 203 सा० | 22 सा० // सातवीं तमस्तम प्रभामां // 1 / 22 सा०३३ सा० الهام مهم هم ام للأمم 15 , 3 , 17 सागरोपम // इति प्रथमं स्थितिद्वारम् // अवतरण-इस से पूर्व नारकी के प्रथम स्थितिद्वार को वर्णित करके दिखाया गया है। अब दूसरा भवनद्वार कहने से पहले नारकी के तथाविध वेदना का कुछ स्वरूप बताते हैं, जिस में प्रथम नरक क्षेत्रगत वेदना एवं पीड़ा के भयंकर प्रकार बताते हैं। सत्तसु खित्तजविअणा, अन्नोन्नकयावि पहरणेहि विणा / पहरणकयाऽवि पंचसु, तिसु परमाहम्मिअकया वि // 206 //