________________ 4 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ ग्रंथभूमिका 40 वर्षसे जिन शंकाओंका समाधान नहीं हुआ था, वह मुनिजीके भाषांतरसे हुआ। यह लिखकर अति धन्यवाद लिखा था / 8-10 दैनिक-साप्ताहिक पत्रोंने भी ग्रन्थका विस्तृत अभिप्राय छापकर बहुत भारी प्रशंसा की थी। ये अभिप्राय इसी पुस्तकमें अन्तमें देंगे। उसी गुजराती भाषांतर परसे यह हिन्ही भाषांतर किया है जो यहाँ छप रहा है। -प्रकाशक सूचना-यहाँसे सही ग्रन्थकी शुरूआत होती है। आगे आनेवाली प्रथम गाथाके अनुसन्धानमें यहां लम्बे __ अवतरणके बाद नमिऊं यह प्रथम गाथाका प्रारम्भ होगा / 1. ग्रन्थभूमिका..वीर संवतकी 11 वीं और विक्रम संवतकी छठी शताब्दिमें विद्यमान, पूज्य प्रवर भाष्यकार भगवान् श्रीमान् जिनभद्रगणी क्षमाश्रमणजी महाराजने श्रीपन्नवणासूत्र तथा श्रीजीवाभिगमसूत्र आदि आगमग्रन्थोंमेंसे सार और उपयोगी विषयका संग्रह करके, भव्य जीवोंके कल्याण के लिए संग्रहणी अथवा प्रसिद्ध नाम 'श्री बृहत संग्रहणी' नामका एक अति उपयोगी द्रव्यानुयोग-गणितानुयोगप्रधान महान् ग्रन्थकी जो रचना की है, 1. यह मूलगाथाप्रमाण क्षेपक गाथाओंके कारण बढ़कर 349 गाथाका हो गया है / 2. यद्यपि वर्तमानमें जंबूद्वीप संग्रहणीको लघुसंग्रहणी मानी जाती है। परंतु वास्तविक रूपमें उस संग्रहणी में जंबूद्वीपका ही वर्णन आनेके कारण 'जंबूद्वीप संग्रहणी' नाम उस ग्रन्थके लिए उचित है। जब कि ‘दंडक प्रकरण 'को लघु संग्रहणी कहनेमें कुछ भी बाधा नहीं दिखती, क्योंकि बृहत्संग्रहणीमें जो विषय विशेषरूपसे वर्णित किया है उसी विषयको संक्षिप्तमें सरलताके लिए चौबीस दंडककी अपेक्षा रखकर इस ग्रन्थमें वर्णन किया गया है / और श्री दंडक प्रकरणके वृत्तिकार महर्षि श्री रूपचन्द्रमुनिके प्रारंभके प्रणम्य परया भक्त्या, जिनेन्द्रचरणाम्बुजं / लघुसंग्रहणीटीकां, करिष्येऽहं मुदा वराम् // 1 // और बृहत्संग्रहणीकी 'चन्द्रीया' टीकामें 'गाथाद्वयप्रमाणा संक्षिप्ततरा संग्रहणीः' इस उल्लेखसे भी दंडकको संग्रहणी कह सकते हैं / इसश्लोकसे 'दंडकका असल नाम 'लघुसंग्रहणी' था वह स्पष्ट हो जाता है / कतिपय आचार्य इस दंडक प्रकरणको ‘श्री विचारषट्त्रिंशिका 'के नामसे भी संबोधित करते हैं / . २-मंगल शब्दस्य कोऽर्थः-पूर्णतां मङ्गति गच्छति-चा (मङ्गेरलच-सूत्रात् पा० उ० पञ्चमपाद, चरमसूत्र ) मंगति दूरदृष्टमनेन-अस्माद् वेत्ति मंगलम् अथवा मां-धर्म लातीति मङ्गालम् धर्मोपादानहेतुः, अथवा मां गालयति पापादिति मङ्गलं / जिससे पापका नाश हो उसका नाम मंगल /