________________ 38 ] बृहत्संग्रणीरत्न हिन्दी [ गाथा 5-6 भरे हुए प्याले में अस्पृष्टरूपसे रहे यह कैसे सम्भव नहीं हो सकता है ? दूसरा उदाहरण लें-स्थूलदृष्टि से अत्यन्त घन-ठोससे ठोस ऐसे स्तम्भमें भी सैकडों कीलियोंका समावेश खुशीसे हो सकता है, तदनन्तर इस पल्यमें अस्पृष्ट आकाश प्रदेशोंकी स्थिति किस प्रकार सम्भव नहीं हो सकती है ? अर्थात् सम्भवित है ही। ऐसे दस कोडाकोडी सूक्ष्म क्षेत्र-पल्योपमसे 6. 'सूक्ष्म क्षेत्र सागरोपम' होता है। ये सूक्ष्म-क्षेत्र पल्योपम तथा सागरोपम, बादर क्षेत्रपल्योपम-सागरोपमसे असंख्य गुण प्रमाणवाले हैं। ये सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपम और सागरोपम सादि अर्थात् चलते-फिरते जीवोंका परिमाण दिखानेमें उपयोगी बताये हैं। -इति सूक्ष्मक्षेत्रपल्योपमस्वरूपम् // इस प्रकार पल्योपम-सागरोपमका विवरण समाप्त हुआ। इस तरह समयसे प्रारंभ करके पल्योपम तथा सागरोपम तकका स्वरूप बताया गया। अब सागरोपमसे अधिक महत्त्वपूर्ण जो उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीरूप काल है उसे दिखाते हैं और साथ ही साथ उस में प्रवर्तमान भावोंका किंचित् स्वरूप भी कहा जाता है, // अवसर्पिणी स्वरूपम् // दस कोडाकोडी सागरोपमकी एक अवसर्पिणी और उतने ही काल प्रमाणकी एक उत्सर्पिणी होती है; ऐसा शास्त्रकारोंने कहा है। , यह अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी अनादि-संसिद्ध ऐसे छः छः प्रकारके आरों (युग)के भेदसे परिपूर्ण होती हैं। अवसर्पिणीके छः आरे क्रमशः हीन-हीन भाववाले होते हैं / ऐसी अवसर्पिणियाँ और उत्सर्पिणियाँ भूतकालमें अनन्त बह गई और भविष्यमें भी अनन्त बीतेंगी। यह घटनाक्रम वैसे जगत् स्वभावसे चालू ही है। - उन अवसर्पिणी-उत्सर्पिणियोंमेंसे प्रथम अवसर्पिणीके छः ५५आरोंका स्वरूप दिखाया जाता है। ... 1. सुषम-सुषम आरा-सुख सुख ! जिसमें केवल सुख ही बना रहता हो। यह आरा सूक्ष्मअद्धा 4 कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है। इस आरेके प्रारम्भमें मनुष्यका आयुष्य 3 पल्योपम और शरीरकी ऊँचाई 3 कोसकी होती है। इस आरेके मनुष्य हर तीसरे दिन एक अरहरके दानेके जितना कल्पवृक्षके पत्र-पुष्पफलादिका आहार करते हैं और 55. सुसम-सुसमा य सुसमा, सुसम-दुसमा य दुसम-सुसमाय / दुसमा य दुसम-दुसमा वसप्पिणुसप्पिणुक्कमओ // 1 // [काल सप्ततिका ] *