________________ जैनशास्त्रका आश्चर्यजनक विशाल संख्यक गणितगाथा 5-6 / 37 - यद्यपि यहाँ बालापोंका असंख्यबार खण्ड करनेका कुछ भी प्रयोजन नहीं है, क्योंकि सारे पल्यमें स्थित सर्व आकाशप्रदेशोंको तो निकालना है ही, तथापि बालापोंके असंख्यात खण्ड करनेके साथ भरनेका क्या कारण है ? इस शंकाके समाधानमें यह समझें कि दृष्टिवाद नामके बारहवें सूत्रांगमें कुछ द्रव्यप्रमाण स्पृष्ट आकाशप्रदेशोंसे, कुछ मात्र अस्पृष्ट आकाशप्रदेश-प्रमाणसे और कुछ स्पृष्टास्पृष्ट आकाशप्रदेशोंसे—इस तरह तीनों रीतियोंसे माप होनेसे तीनों रीतियोंसे-कालका मान समझनेके लिए उक्त 53 प्ररूपणा की है। प्रश्न-इस पल्यमें स्थित बालाग्र इस प्रकार निबिड भरे होते हैं कि चक्रवर्तीका सैन्य एक बार शायद चला जाए तो भी वे बालाग्र जरा भी दब नहीं सकते, तो ऐसे पल्यमें भी अस्पृष्ट आकाशप्रदेश क्या सम्भव है ? उत्तर-हाँ ! पल्यमें स्थित रोमखण्ड चाहे जैसे खचाखच भरे हों तब भी वह रोमखण्ड वस्तु ही औदारिक वर्गणाकी होनेसे ऐसे बादर परिणामवाली है कि जिसका स्कन्ध ऐसे प्रकारका घन-परिणामवाला नहीं हो सकता कि जो स्कन्ध स्व-स्थानवर्ती आकाश-प्रदेशों में व्यावृत्त (व्याप्त ) हो जाय, अतः हरएक बालाग्र अनेक छिद्रोंवाला है। वह छिद्रों में भी आकाशप्रदेशसे अस्पृष्ट होता है। किसी भी औदारिकादि शरीर स्कन्धके अवयव सर्वथा निश्छिद्रक नहीं होते, इसी कारण स्पृष्टकी अपेक्षा अस्पृष्ट आकाश-प्रदेश असंख्यगुण भी संभवित हो सकते हैं। साथ ही, रोमखण्ड बादरपरिणामवाले हैं तो आकाशप्रदेश तो अति सूक्ष्म-परिणामवाले और अरूपी हैं। इसलिए बादर परिणामवाली वस्तुमें अति सूक्ष्मपरिणामी अस्पृष्ट आकाशप्रदेश संभवित हो उसमें किसी भी प्रकारका विसंवाद है ही नहीं / एक बाह्य उदाहरण द्वारा इसे समझ सकेंगे कि ५४कुम्हडोंसे भरी कोठीमें परस्पर पोलापन होता है और उस पोलेपनमें बहुतसे बिजौरे के फल समा सकते हैं, उन बिजौरों में प्रवर्तमान पोलेपनमें हरे रह सकते हैं, हरे के पोले भागोंमें झरवेर रह सकते हैं, बेरोंके पोलेपनमें चने समा सकते हैं, चनेके अन्तरमें तिल, उसके आंतरमें सरसों आदि सूक्ष्मसूक्ष्मतर वस्तुएँ समा सकती हैं; तदनन्तर एक अति सूक्ष्मपरिणामी आकाश-प्रदेश बालापोंसे 53. उसके लिए देखें बृहत्संग्रहणी, अनुयोगद्वारसूत्र, पंचम-कर्मग्रन्थ वृत्ति आदि / 54. 'तत्थ णं चोअए पण्णवर्ग एवं वयासी-अस्थि णं तस्स पल्लस्स आगास-पएसा जे णं तेहिं वालग्गेहि अणाप्फुण्णा ? हंता अस्थि, जहाको दिट्ठतो ? से जहानामणाए कोठए सिया कोहंडाणं भरिए / तत्थ णं माउलिंगा. पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं बिल्ला पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ णं आमलगा पक्खित्ता तेवि माया, तत्थ णं बयरा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं चणगा पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं तिला ( मुग्गा ) य पक्खित्ता ते वि माया, तत्थ णं गंगावालुआ पक्खित्ता सा वि माया, एवमेव एएणं दिट्ठतेणं अत्थि णं तस्स पल्लस्स आगासपएसा जे णं तेहिं वालग्गेहि अणाप्फुण्णा' इति / [अनुयोगद्वार सूत्र 140 ]