________________ किस जीवका कौनसा संस्थान हो ? और आगति द्वार ] गाथा 166-167 [ 343 देव हमेशा 314 भवधारणीय अपेक्षासे समचतुरस्र संस्थानवाले (चारों ओरसे समान विस्तारवाले सुलक्षणित ) होते हैं, शेष रहे हुए नारक3१५ एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, त्रीइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, संमूर्छिम पंचेन्द्रिय, मनुष्य, 31 तिर्यच इन सभीको हुण्डक संस्थानवाले जानेंसमझें / 163-165 ] // किस जीवका कौन-सा संस्थान हों ? उसका यन्त्र // जातिनाम सं. सं. नाम | सं. सं. | गर्भज मनुष्य विकलेन्द्रियका हुण्डक गर्भज तिर्यच नारकीका देवोंको प्रथम एकेन्द्रियका // इति देवानामष्टमं गतिद्वारम् // vacances screenscecusaca * // देवोंका नवाँ 'आगति' द्वार // . अवतरण हम इसके पूर्व देवोंका गतिद्वार बता चुके हैं। अब दो गाथाओंसे देवोंके .. नौवें आगतिद्वार-वे देव स्वस्थान (अपने स्थानसे) च्यवकर कहाँ आते हैं ? (अथवा कहाँ जाते हैं ?) उसे बताते हैं। जंति सुरा संखाउय-गम्भयपज्जत्तमणुअतिरिएसुं / पज्जत्तेसु य बादर-भूदगपत्तेयगवणेसु // 166 // तत्थवि सणंकुमार-प्पभिई एगिदिएसुं नो जंति / आणयपमुहा चविउं, मणुएK चेव गच्छंति // 167 / / गाथार्थ—सामान्य लोगोंसे बढ़कर देवगण संख्याता वर्ष उम्रवाला होता है जो पर्याप्ता 314. लेकिन उत्तरवैक्रियकी अपेक्षासे ये छः संस्थान हो सकते हैं। 315. एकेन्द्रिय जीवोंमें धरती (पृथ्वी ), अप् , तेउ, वायुके मसुरचन्द, बुलबुला, सूई, पताकादि आकारोंको हुंडकके भेद समान हम मान सकते हैं। 316. कर्मग्रन्थकार छः संस्थान कहते हैं /