________________ चरक-परिव्राजक-श्रावकादिकी उत्कृष्ट गति ] गाथा 154-155 / [331 समझना, ये तिर्यंच होते हुए भी उपरोक्त जीवोंके बदले ज्यादा लाभ उठाते हैं इसका प्रमुख कारण सम्यक्त्व और (या) देशविरतिकी प्राप्ति यह एक ही है / जब उक्त जीव त्याग-तपरूप धर्म अमुक प्रकारसे करते हैं, परन्तु वह अज्ञानरूपसे और जिनेश्वरके मार्गसे विपरीतरूपसे होनेके कारण एक बार थोड़ा-ज्यादा फल देकर अन्तमें निष्फल होते हैं / जा अच्चुओ सड्ढा-श्रावक उत्कृष्टसे मरकर यावत् अच्युत देवलोकमें उत्पन्न होता है, परन्तु वह देशविरतिवन्त-संयमी शुभभावनाके योगसे शुभ आयुष्य बन्ध करके जो मरनेवाला हो वह ही / ___ यहाँ इतना विशेष समझें कि तिर्यंचकी देशविरतिसे श्रावककी देशविरति मनुष्यभवके लिए अधिक निर्मल, उत्तम प्रकारकी प्राप्त करता होनेसे उस गतिके लाभको अधिक पा सकता है / [154] अवतरण-प्रस्तुत प्रकरणको आगे चलाते मिथ्यादृष्टि किसे कहते हैं, यह बताते है / जइलिंग मिच्छदिट्ठी, गेवेज्जा जाव जति उक्कोसं / पयमवि असद्दहतो, सुत्ततं मिच्छदिट्ठी उ // 155 / / गाथार्थ-विशेषार्थवत् / / / 155 / / विशेषार्थ-लिंग साधुका हो अर्थात् रजोहरणादि साधुवेष आदि धारण किया हो लेकिन मिथ्यादृष्टि हो वह उत्कृष्टसे नव प्रैवेयक तक उत्पन्न होता है / - कोई जीव जिनेश्वर भगवन्तकी अथवा कोई प्रभाविकलब्धिधारी यतिकी रिद्धि सिद्धि, देव-दानव और मानवोंसे होते पूजा-सत्कारादि देखकर वह अपने मनमें विचार करें कि मैं भी यदि ऐसा यतिपन लूँ तो मेरा भी पूजा-सत्कार होगा, ऐसा केवल ऐहिक सुखकी इच्छासे (नहीं कि मुक्तिकी) कंचन-कामिनीके त्यागी ऐसे उस यतिकी तरह ही यतिपन धारण करें, और साधु होने के बाद ऐसे अर्थात् इस प्रकारके उत्कृष्ट कोटिका संयम रखें कि मक्खीकी पंखको भी किलामन होने न दे ऐसी सूक्ष्म रीतसे जीवरक्षादि क्रिया करें, यद्यपि यह सब वह श्रद्धा रहित अर्थात् प्रशम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्यके गुणोंसे भी विकल होने पर भी बाह्य दशविध चक्रवाल समाचारीकी क्रियाका उत्कृष्ट रूपसे यथार्थ आराधन करता होनेसे मात्र उसी क्रियाके बल पर [ अंगारमर्दकाचार्यवत् ] उत्कृष्ट से नव ग्रैवेयक तक उत्पन्न हो सकता है। मिथ्या क्रिया भी कितनी उच्च गति प्राप्त करा सकती है। यह क्रिया मार्गकी जो लोग अवगणना करते हैं वे इसका गहरा विचार करें, और अगर मिथ्या क्रिया भी ऐसा फल दे सकती है तो सम्यक् क्रिया कैसा फल दे सके यह भी सोचे / मिच्छदिट्ठि-मिथ्यादृष्टि भी नौ ग्रैवेयक तक उत्पन्न हो सकती है।