________________ गतिके बारेमें शंका ] गाथा 125-126 [ 301 लिए उक्त चंडादि चारों गतिके प्रमाणको नौगुना करके चारों प्रकारके परिधिको यथासंख्यगतिसे पूर्वोक्त रीतिसे 6 मास तक मापे तो कतिपय विमानोंका पार पाते हैं। यहाँ सर्वार्थसिद्ध विमानका माप नहीं कहा गया क्योंकि वह विमान तो मर्यादित एक लाख योजनका ही है, जिससे उसे मापनेका होता ही नहीं। ऐसा सर्व इन्द्रक विमानों के लिए समझना। ___ इस मतमें कुछ आचार्य असंमत हैं। वे बताते हैं कि-पूर्वोक्त रीतसे (चंडादि त्रिगुणादिक ) करने पर भी छः मास व्यतीत हो तो भी पार नहीं पा सकते / जिसके लिए कहा है कि चत्तारिवि सकमेहि, चंडाइ गईहिं जाति छम्मास / तहवि नवि जंति पारं, केसिंचि सुरा विमाणाणं // शंका-जब ऐसे महत् महत् प्रमाण द्वारा छः छः मास तक चलने पर भी उस विमानके प्रमाणका पार नहीं पा सकते, तो सिद्धान्तोंके कथनानुसार-परम पुनित सर्व जीवोंको अभयदान देनेवाले जिनेश्वरदेव आदिके च्यवन-जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान और मोक्ष इन पंच कल्याणक प्रसंगमें संख्याबन्ध देव पृथ्वीतल पर आकर कल्याणककी महान् क्रियाओंको पूर्ण करके पुनः एक दो प्रहरमें ही लौट जाते हैं। (रात्रिको आकर सुबह होते ही स्वस्थान पर हाजिर हो जाते हैं।) ऐसा जो उल्लेख है वह कैसे चरितार्थ हो सकेगा ? क्योंकि उन उन विमानोंसे मनुष्यक्षेत्रमें आनेमें कई गुना अन्तर प्रमाण रहा है। समाधान-ऊपर जिस गतिका वर्णन किया गया उसका प्रयोजन सिर्फ असंख्याता योजनके प्रमाणोंवाले विमान कैसे महत्प्रमाण सूचक हैं, उसका असत्कल्पना द्वारा दृष्टान्त देकर समझाना मात्र है। नहीं तो वे देव कभी मापने नहीं गये या जानेवाले नहीं, सिर्फ जिस तरह पल्योपमकी स्थितिके वर्णन प्रसंग पर कल्पना द्वारा कालकी सिद्धि की जाती है उसी तरह यहाँ भी एक प्रकारकी असत् कल्पना ही की है कि इस तरह भी चलने लगे तो वे विमानके अन्तका कब पार पावे ? तो बताया कि-छः मासमें। तब हमें सहज विचार आता है कि ये विमान कितने बड़े होंगे ? बाकी तो देव अपने विमानमें ही कई बार घूमते होंगे। अगर वे चाहे तो देखते देखते उन विमानोंके अन्तको पा सकते हैं, क्योंकि उनकी शक्ति अचिन्त्य है, अत्यन्त शीघ्रतर गतिवाले और सामर्थ्ययुक्त है / [125-126] इति वैमानिकेविमानाधिकारः // अवतरण-अब तद्वत् प्रासंगिक गतिकी असत् कल्पनाद्वारा एक राजका प्रमाण दर्शाते हैं / परन्तु यह दृष्टांत घटनीय नहीं है / गतिका वेग और समयकी मर्यादा देखते संख्यात योजन ही मापा जा सकता है / फिर असंख्यात राजप्रमाण किस तरह निकल