________________ 29.8 ] वृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 119-123 त्रिगुण प्रमाण 'चंडा' गतिका९४५२६ - 13 42 पंचगुण प्रमाण 'चपला' गतिका 94526 - 13 . 42 120 283578 6 0) 126 (2 472630 6 0)210 (3 + 2 180 283580 ई. भागप्रमाण 06 472633 3: भागप्रमाण 030 [ 119-120] अवतरण-अब सप्तगुण तथा नवगुणप्रमाण बताते हैं और चारों गतियों के नामपूर्वक यथासंख्यत्व जणाते हैं / सत्तगुणे छलक्खा, इगसहि, सहस्स छसय छासीया / चउपन्न कला तह नव-गुणम्मि अडलक्ख सड्ढाउ / / 121 // सत्तसया चत्ताला, अट्ठार कला य इय कमा चउरो / चंडा-चवला-जयणा, वेगा य तहा गइ चउरो // 122 / / गाथार्थ-उस उदयास्त अन्तरको सात गुना करनेसे 661686 यो० 54 भाग प्रमाण आवे / और उसी तरह नौगुना करनेसे 850740 यो० भाग प्रमाण आवे / उन चारों प्रमाणोंको अनुक्रमसे चंडा-चवला-जयणा और वेगाके साथ (यथासंख्य) योजें / // 121-122 // विशेषार्थ-इस तरह नवगुणप्रमाण 'वेगा' गतिका सप्तगुणप्रमाण 'जयणा' गतिका 94526-12 42 94526-12 42 x 7 850734 6 0) 378 (6 661682 60)294 (4 + 4 54 2 44 85074010 भागप्रमाण 018 661686 यो 14 भागप्रमाण [121-122 अवतरण-अन्य आचार्य वेगा' गतिको अन्य जिस नामसे परिचित कराते हैं उस नामको दिखाकर ग्रन्थकार महर्षि उक्त गतिसे चलते उन उन विमानोंका पार पा सकते या नहीं ? यही बताते हैं / इत्थ य गई चउत्थिं, जयणयरिं नाम केइ मन्नंति / एहिं कमेहिमिमाहिं, गईहिं चउरो सुरा कमसो // 123 // 360