________________ देवलोकका आधार किन किनके पर हैं वह ] गाथा-११३ [293 // वैमानिक निकायमें बारह देवलोकके चिह्न-सामानिक-आत्मरक्षक देव संख्या यन्त्र // स० सर्पका | कल्प नाम | चिढ़ सामानिक आत्मरक्षक | | सं० | सं० | कल्पनाम | चिह्न सामानिक | आत्मा संख्या 1. सौधर्म क० मृगका |840003,36,0007. महाशुक्रमें, घोडेका 40,000 1,60,000 2. ईशानमें | भैसेका 800003,20,000 8. सहस्रारमें गजका (30,000 1,20,000 3. सनत्कुमारमें सूअरका 72000 2,88,000 9. आनतमें | 4. माहेन्द्र में | सिंहका 70000 2,80,000 10. प्राणतमें गेंडेका 5. ब्रह्मकल्पमें बकरेका 60000 2,40,000 11. आरणमें वृषभका | 6. लांतकमें | मेंढकका 50000 2,00,000 १२.अच्युतमें मृगविशेषका!'' 10,000 40,000 अवतरण-अब वे कल्प किन किनके आधार पर रहे हैं ? यह कहते हैं / दुसु तिसु तिसु कप्पेसु, घणुदहि घणवाय तदुभयं च कमा / सुर भवण पइट्ठाणं, आगासपइट्ठिया उवरि / / 113 // गाथार्थ-प्रथमके दो कल्पोंमें घनोदधिका आधार, तत्पश्चात् तीसरे, चौथे और पांचवें इन तीनों कल्पोंमें घनवातका आधार, छठे-सातवें और आठवें इन तीनों कल्पोंमें घनोदधि और घनवातका आधार, तत्पश्चात् ऊपरके सर्व कल्प शुद्ध आकाशाधारपर प्रतिष्ठित हैं। // 113 // विशेषार्थ-घनोदधि-घन = कठिन - ठोस, उदधि = पानी। कठिन मजबूतमें मजबूत जमे हुए घी जैसा जगत् स्वभावसे जमकर रहा जो पानी वह अप्कायके भेदरूप होनेसे सजीव होता है। घनवात-ट्स ढूंस कर भरा जैसा मजबूतमें मजबूत घट्ट वायु वह वायुकायके भेदरूप होनेसे सजीव है। आगास-अवकाश देनेके स्वभाववाला एक अरूपी द्रव्य / / सौधर्म और ईशान यह कल्पयुगल सिर्फ घनोदधिके आधार पर ही रहे हैं, सनत्कुमार-माहेन्द्र और ब्रह्म ये तीनों २८°कल्प घनवातके आधार पर हैं, लांतक-शुक्र और - 280. घनवातके साथ तनवातका कथन जहाँ इन आता हो वहाँ उन दोनोंको सोचें, क्योंकि यह वस्तु तो आकाशाधार पर है। और आकाश तो स्वयं प्रतिष्ठित ही है।