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________________ प्रतिकल्पमें त्रिकोणादि विमान संख्या ] गाथा 111 [291 0 0 0 0 0 356 | 348 874 20/ 0 0 0 0 2 0 0 0 0 0 0 332 0 0 0 0 0 / प्रतिकल्पमें त्रिकोणादिविमान संख्या यन्त्र // | त्रिकोण | चौकोन कुल कल्प नाम | सं. | सं. | वृत्त सं. आ. सं. | पुष्पा. सं. सर्व संख्या 1. सौधर्मकल्पमें | 494 486 | 727 | 1707 3198293 |3200000 2. ईशान कल्पमें 494 486 / 238 | 1218 2798782 2800000 दोनोंके मिलकर | 988 / 972 965 2925 5997075 |6000000 3. सनत्कुमार० 356 | 348 | 522 1226 1198774| 4. माहेन्द्र० | 799126, 800000 दोनोंके मिलकर 696 692 2100 1997900 5. ब्रह्मलोक० 274 834 | 399166 6. लांतक० 193 585 49415 50000 7. महाशुक्र० 128 396 39604 40000 8. सहस्त्रार० 108 5668 6000 9-10. आनतःप्राणतमें 268 132 400 ११-१२.आरण-अच्युतमे 204 अधस्तन प्रैवेयकमें | 111 मध्यम ग्रेवेयकमें | 28 107 उपरितन अवेयकमें अनुत्तर कल्पमें 4 बासठ प्रतरमें कुल | 2688 | 204 2582] 7874 8489149/8497023 संख्या | नवें. कल्पमें सर्पका, दसवें कल्पमें २७४गेंडेका, ग्यारहवें कल्पमें वृषभका और बारहवें कल्पमें एक जातिविशेष मृगका चिह्न होता है / - ये सर्व चिह्न रत्नमय मुकुटमें होनेसे उनके पर मुकुटवर्ती रत्नोंकी कांति पडनेसे अत्यन्त शोभते हैं। शंका-बारह देवलोकके चिह्न कहे इस तरह नव अवेयक तथा अनुत्तर कल्पके क्यों न कहे ? ___279. गेंडा यह जानवर अफ्रिका देशमें विशेषतः होता है और उसके मुख पर एक तीक्ष्ण नोकदार सींग होता है, उसके द्वारा वह अपना संपूर्ण रक्षण कर सकता है। यह जानवर बहुत ही बलवान होता है। 111
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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