________________ 266 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-20 2. चन्द्रकी मुहूर्त्तगति सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें संक्रमण करते दोनों चन्द्रोंकी मुहूर्तगति सूर्यमण्डलवत् परिधिके हिसाबसे 5073 19745 यो की होती है, क्योंकि एक चन्द्रमा एक अर्धमण्डलको 1 अहोरात्र - 1 मु० और ऊपर 11 // भाग मुहूर्त्तके दरमियान पूरा करता है। चन्द्र दूसरा 221 भी स्वचारित अर्धमण्डल उतने ही कालमें पूर्ण करता होनेसे उस एक मण्डलको पूर्ण करते 2 अहोरात्र और 2 ३३मु० होता है / चन्द्र विमानकी मन्दगतिके कारण उस मण्डलको 62 मुहूर्तसे अधिक समयमें पूर्ण करता है / सर्वाभ्यन्तरमण्डलसे अनन्तर मण्डलोंके लिए पूर्व पूर्वके मुहूर्त गतिमानमें प्रतिमण्डल होती सा० 230 योजनकी परिधिकी वृद्धि हिसाबसे 3 यो० 3758 भा० अर्थात् किंचित न्यून 3 // यो० जितनी मुहूर्त गतिकी वृद्धि करते हुए इच्छितमण्डलमें मुहूर्तगति निकालते हुए अन्तिममण्डलमें जाने पर वहाँ 5125 श्चि यो० मुहूर्त गति आती है। . ' 3. चन्द्रकी दृष्टिपथ प्राप्ति सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें दोनों चन्द्र 47263 ॐ यो०से दृष्टिगोचर होता है और. वह अन्तिममण्डलमें 31831 यो० ( दूर )से लोगोंको दीखता है, शेष मण्डलोंके लिए स्वयं उल्लेख देखनेमें आता नहीं; परन्तु सूर्यमण्डलवत् उपाय योजनेसे आ सकेगा। 4. चन्द्रके साधारणासाधारणमण्डल 1-3-6-7-8-10-11-15 इन आठ मण्डलों में चन्द्रको कभी भी नक्षत्रका विरह नहीं होता क्योंकि वहाँ नक्षत्रका चार हमेशा होता है / जो ‘नक्षत्र परिशिष्ट ' प्रसंग पर कहा गया है। 2-4-5-9-12-13-14 मण्डलोंमें नक्षत्रका विरह ही होता है / 1-3-11--15 ये चार मण्डल सूर्य-चन्द्र तथा नक्षत्र सभीको सामान्य है। इन चन्द्रमण्डलोंमें जरा भी गमन नहीं है। इति संक्षेपेण जम्बूद्वीपगत चन्द्र-सूर्य मण्डलाधिकारः समाप्तः // जम्बूद्वीपवर्ती समग्रसमय (ढाईद्वीप) क्षेत्रमें सूर्य-चन्द्रमण्डलाधिकारः // लवणसमुद्र-धातकीखण्ड-कालोदधिसमुद्र और पुष्करार्धगत सूर्योंकी व्यवस्था जम्बूद्वीपगत् सूर्यवत् सोचें, क्योंकि मनुष्यक्षेत्रमें रही मेरुके दोनों बाजूवर्ती पंक्तिमें रहे 132