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________________ चन्द्रमण्डलकी परस्पर अबाधा और परिधि प्ररुपणा ] गाथा 86-90 [ 265 चन्द्रमण्डलके आठ आठ अंश बचते, ये अंश भी 510 यो०के सूर्यमण्डल क्षेत्रमेंसे कम होनेसे, सर्वबाह्यमण्डलमें प्रति बाजू पर, सर्वाभ्यन्तरमण्डलकी अपेक्षा 509 यो०५३ भाग प्रमाण क्षेत्र हो उन दोनों बाजू वर्ती क्षेत्रका जोड करनेसे [509 53 + 509 53 = ] 1019 35 भाग होता है / [ इतना क्षेत्र चौदह मण्डल क्षेत्र और चौदह आंतर क्षेत्र द्वारा पूरित होता है / इस क्षेत्रमें सर्वाभ्यन्तरमण्डलका परस्पर मेरु व्याघातिक मध्य क्षेत्र प्रमाण 99640 योजन प्रक्षेप करने पर (1019 यो० 45 भाग + 99640 यो० =) 100659 यो० 45 भागका सर्वबाह्यमण्डलमें चन्द्र-चन्द्रका जो अन्तर कहा वह यथार्थ आ जाता है / इस तरह चन्द्रमण्डलकी अधिकताके कारण ही 16 अंशका जो तफावत पड़ता है वह बताया / [ दूसरी तरह सोचे तो चन्द्रके प्रत्येक मण्डलमें होता अन्तरवृद्धि प्रमाण मण्डल तथा अन्तर विस्तार सहित 72. यो० 51 भाग और 1 प्रतिभाग है और चन्द्रमण्डलका अन्तर 14 है अतः उस अन्तरवृद्धि प्रमाणके साथ चौदहसे गुना करनेसे 1019 यो० 45 भाग प्रमाणक्षेत्र प्राप्त होगा, इत्यादिक गणितशास्त्रकी अनेक रीतियाँ होनेसे गणितज्ञ पुरुष अन्तरवृद्धिसे मण्डलक्षेत्र, मण्डलवृद्धिसे अन्तरक्षेत्र इत्यादिक कोई भी प्रमाण, उन उन रीतियों द्वारा स्वतः प्राप्त कर सकते हैं ] इति मण्डले मण्डले चन्द्रयोः परस्परमबाधा-प्ररूपणा तत्समाप्तौ च अबाधा प्ररूपणाऽऽख्यं द्वारं समाप्तम् // सूचना -अब चन्द्र मण्डलकी गति विषयक चार अनुयोग द्वार कहे हैं वे नीचे अनुसार हैं - 1. चन्द्रमण्डलोंकी परिधि प्ररूपणा चन्द्रका प्रथम मण्डलका परिधि सूर्यमण्डलवत् जाने / क्योंकि जिस स्थानमें चन्द्रमण्डल पड़ता है उसी स्थानमें, ऊर्ध्व भाग पर (80 यो• ऊँचा ) चन्द्रमण्डल रहा है। अन्य मण्डलोंके परिधिके लिए पूर्व मण्डलसे पश्चिम मण्डलकी चौडाईमें पहले जो 72 यो की वृद्धि कही है उसका अलग ही परिधि निकालने पर किंचिद् अधिक 23 यो० आएगा / यह परिधि प्रमाण पूर्व पूर्वके मण्डलोंमें जोड़नेसे अनन्तर आगे-आगेके मण्डलका परिधि प्रमाण आएगा / अतः सर्वाभ्यन्तर मण्डलके परिधिमें 23 यो० जोडनेसे दूसरे मण्डलका 315319 यो०, तीसरेका 256315549 यो० इस तरह करनेसे यावत् अन्तिम मण्डलका परिधि 318315 योजन प्राप्त होगा। 256. चौदह बार 230 x 14 = 3220 यो० जोडनेसे 318309 यो० आनेसे 6 यो० कम होते हैं, उस 230 योजनका देशोन 0|| यो० न बढ़ानेसे तूटता है इसलिए पर्यन्तमें या मध्यमें-पूर्ण अंकस्थानमें देशोन 0 // योजनसे उत्पन्न अंक बढ़ानेसे यथार्थ परिधि प्राप्त होगा / बृ. सं. 34
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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