________________ चन्द्रके मण्डलोंका चारक्षेत्र प्रमाण ] गाथा 86-90 [ 257 . // अथ श्रीचन्द्रमण्डलाधिकारः प्रारभ्यते / / ___ पूर्व सूर्यमण्डलाधिकारमें सूर्यमण्डलोंका सर्व आम्नाय कहा गया। अब चन्द्रमाके मण्डल विषयक जो अवस्थित आम्नाय है उसका ही अधिकार कहा जाता है। // सूर्यमण्डलसे चन्द्रमण्डलका भिन्नत्व // चन्द्र तथा सूर्यके मण्डलों में बड़ा तफावत रहा है, क्योंकि सूर्यके 184 मण्डल हैं और उनमेंसे 119 मण्डल लवणसमुद्रमें पड़ते हैं और 65 जम्बूद्वीपमें पड़ते हैं। जबकि चन्द्रके केवल 15 मण्डल हैं और उनमेंसे 10 मण्डल लवणसमुद्रवर्ती और 5 मण्डल जम्बूद्वीपवर्ती हैं। अतः उनके मण्डलोंका परस्पर अन्तर-परस्पर अबाधादि सर्व विशेषतः तफावतवाला है। चन्द्रकी गति मन्द होनेसे चन्द्र अपने मण्डलोंको दूर दूरवर्ती अन्तर पर करता जाता है। जब कि सूर्य शीघ्रगतिवाला होनेसे अपने मण्डलोंको समीपवर्ती करता जाता है इससे उसकी संख्या भी अधिक हो जाती है। उक्त स्वरूप आदि विषयका ख्याल सूर्यमण्डलाधिकार पढनेसे स्वयं समझा जा सकता है। 1. चन्द्रके मण्डलोंका चारक्षेत्र प्रमाण चन्द्रका चारक्षेत्र सूर्यके जितना ही अर्थात् 510 यो०४६ भाग प्रमाणका है / केवल प्रमाण निकालनेकी पद्धति, मण्डल संख्या और अन्तर प्रमाणके तफावतके बारेमें केवल अंकों में भिन्नता होगी। - अब किस तरह चारक्षेत्रमान निकाले यह जणाते हैं। चन्द्रके एक मण्डलसे दूसरे मण्डलका अन्तर 35 योजन और एक योजनके इकसठवें 30 भाग और इकसठवें एक भागके 7 भाग करें उनमेंसे 4 भाग (35 यो०३:-) जितना है। अब चन्द्रके मण्डल 15 हैं, परन्तु हमें प्रथम उनके आंतरेका प्रमाण निकालना होनेसे पांच अंगुलियोंके अथवा सीधी चुनी पांच दीवारोंके आंतरे जिस तरह चार ही होते हैं उसी. तरह इन 15 मण्डलोंके आंतरे चौदह होते हैं / आंतरोंका माप निकालनेको चौदहकी संख्याके साथ मण्डलांतर प्रमाणसे गुना करें। 14 अन्तर ___x 35 यो० 490 यो० आये। . इकसठवें 30 भाग ऊपर हैं अतः उसके योजन करनेको 14 उसे गुना x 30 इकसठवें भाग 420 इकसठवें भाग आये। बृ. सं. 33