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________________ 256 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90 हो ऐसा लगता है, और मध्याह्नमें नजदीक आनेसे ही आकाशके अग्रभागमें रहें न हो ? ऐसा अपनी दृष्टिमें दीखता है। - इस तरह यथामति सूर्यमण्डलके सम्बन्धी अधिकार कहा। // इति सूर्यमण्डलाधिकारः // कारण सूर्यको न देखनेसे सूर्यास्त हुआ है ऐसा कहते हैं, वस्तुतः वह सूर्यास्त नहीं है परन्तु अपनी दृष्टिके तेजका अस्तभाव है क्योंकि सूर्य अपनेको जिस स्थान पर अस्त-स्वरूपमें दिखाई पड़ा वहाँसे दूर दूरके क्षेत्रोंमें उसी सूर्यका प्रकाश तो पड़ता है, वह कहीं छिप नहीं जाता। अगर हम किसी भी शक्तिके द्वारा किसी भी व्यक्तिको सूर्यास्त स्थान पर भेजे तो सूर्य भरतकी अपेक्षाके अस्तस्थानसे दूर गया हुआ और उतना ही ऊँचा होगा, अथवा रेडियो अथवा टेलिफोनके द्वारा जिस वक्त यहाँ सूर्यास्त होता है उस अवसर पर अमरिका या योरपमें पूछताछ करा ले तो ' हमारे यहाँ अभी अमुक घण्टे ही दिवस बिता है' ऐसा स्पष्ट समाचार मिलेगा / कोई भी वस्तु दूरवर्ती होने पर देखनेवालेको बहुत दूर और अधःस्थान पर-भूभागमें स्पर्श किया हो ऐसी दीखती है, दृष्टिदोषके कारणसे होते *विभ्रमसे उस बातको सत्यांशरूपमें प्रकृतिके नियमसे भी विरुद्ध (सूर्य जमीनमें उतर गया, समुद्रमें पैठ गया-अस्त हुआ) घटाना यह तो प्राज्ञों और विचारशीलोंके लिए अनुचित है। यदि दूर दीखती वस्तुमें उक्त कल्पना करेंगे तो समुद्रमें प्रयाण करता स्टीमर जब-बहुत दूरवर्ती होता है तब हम देख नहीं सकते तो इससे क्या स्टीमर समुद्रमें पैठ गया ? डूब गया ? ऐसी धारणा रखेंगे क्या ? हरगिज़ नहीं। साथ ही दूर दीखते बादल दूरत्वके कारण अपनी दृष्टि-स्वभावसे भूस्पर्श करते देखते हैं तो क्या बहुत ऊँचे, ऐसे बादल भू के साथ स्पर्शित होंगे क्या ? अर्थात् नहीं ही, तो फिर ऐसे बहुत दूर अन्तर पर रहे सूर्यके लिए ऐसा दीखे और इसलिए वैसी कल्पना करना बिलकुल अयोग्य है, सत्यांशसे बहुत ही दूरवर्ती है, और युक्तिसे भी असंगत है। * जैसे किसी एक गाँवके ताड़ जैसे ऊँचे वृक्षोंको (अथवा किसी मनुष्यको) मात्र दो चार कोस दूर देखते हैं फिर भी उन वृक्षोंका केवल ऊपरी भाग सहजतासे दीखता है और मानो वे जमीनसे स्पर्शित हों वैसा भास होता है, परन्तु वहाँ तो जिस स्थितिमें होते हैं उसी स्थितिमें ही होते हैं। वैसा यहाँ भी सोचना जरूरी है।
SR No.004267
Book TitleSangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Original Sutra AuthorChandrasuri
AuthorYashodevsuri
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1984
Total Pages756
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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