________________ 230 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 86-90.. बाह्यमण्डल, संक्रमण करके सर्वबाह्यसे अक्मिण्डलके दक्षिणार्द्ध (दक्षिणदिशागत ) मण्डलमें प्रथम क्षणमें प्रवेश करता है, उसी समय जब दूसरा दक्षिणदिशागत सूर्य एक अहोरात्रि पर्यन्त 2 यो० 48 भाग जितना क्षेत्र व्यतिक्रम होनेके बाद वह अर्वाक् मण्डलके उत्तरार्द्ध मण्डलमें उत्तरायणके प्रथम क्षणमें विवक्षित कोटी स्थानमें आता है / इस तरह हरएक मण्डलोंमें जाते और आते प्रत्येक मण्डलस्थानमें दोनों सूर्य प्रथम क्षणमें एक साथ प्रवेश करते हैं और युगपत् संक्रमण करते हैं / इस अर्वाक् मण्डलमें सूर्य आनेसे सर्वबाह्यमण्डलमें प्राप्त होते 12 मुहूर्त दिनमानमें उत्तरायण होनेसे दिवस वृद्धिंगत होनेका है इसलिए 32 मुहूर्त भाग दिनमानमें वृद्धि, जबकि उतनी ही-३३ भाग रात्रिमानमेंसे हानि हुई होती है / सर्वबाह्यसे अक्मिण्डल में प्रथम क्षणमें आए वे सूर्य सर्वस्व दिशागत अर्ध अर्ध मण्डलोंको अपनी अनादि सिद्ध एक प्रकारकी विशिष्ट गतिसे पूर्ण करते, पूर्वकी तरह लेकिन विपरीत. . क्रमसे उत्तरार्द्धमण्डलमें रहा हुआ सूर्य दक्षिणार्द्ध में आदि क्षणसे प्रवेश करके और दक्षिणार्द्धमण्डलमें रहा हुआ सूर्य उत्तरार्द्धमण्डलोंके आदि क्षणमें प्रवेश करता हुआ प्रत्येक अहोरात्रि पर्यन्त 2 यो० 48 भाग क्षेत्र बिताता हुआ और दिनमानमें इ. भागकी वृद्धि और रात्रिमानमें 3 भागकी हानिमें निमित्तरूप होता हुआ, इस तरह अनुक्रमसे प्रत्येक सूर्य अनन्तर अनन्तर मण्डलाभिमुख चरता हुआ और उन उन मण्डलोंमें, वे दोनों आदि क्षणमें एक साथ आमने सामने प्रवेश करते हुए और उन उन मण्डलोंको चरकर संक्रमण करते वे सूर्य सर्वाभ्यन्तर अर्वाकमण्डलमें उत्तर-दक्षिण दिशामें आते / अब उस उत्तरार्द्धमण्डलमें रहा सूर्य उस उत्तरदिशागत मण्डलको विशिष्ट गतिसे चरकर-संक्रमण करके मेरुसे दक्षिणपूर्वमें आए हुए सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें-दक्षिणार्द्धमण्डलमें प्रथम क्षणमें आता है / उस समय यह सूर्य निषधपर्वतके स्थानसे आरम्भ होते सर्वाभ्यन्तरमण्डलके प्रथम क्षणमें नीलवन्त पर्वतके ऊपर आता है, उस समय दोनों सूर्योंने प्रथम क्षणमें जिस क्षेत्रको स्पर्श किया उसके कारण वह सर्वाभ्यन्तरम डल ऐसा कहा जाता है / इस तरह छः छः मासके दक्षिणायन-उत्तरायणपूर्वक एक सूर्यसंवत्सर पूर्ण होता है / सर्वबाह्यमण्डलसे आए हुए ये दोनों सूर्य जब अभ्यन्तरमण्डलमें प्रथम क्षणमें एक दक्षिणमें और एक उत्तर में आए होते हैं तब दिनमान उत्कृष्ट 18 मुहूर्त्तका और रात्रिमान जघन्य 12 मुहूर्त्तका होता है / ___ यहाँ इतना समझना कि-सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें जो सूर्य दक्षिणार्द्धमण्डलमें विचरण करता हुआ मेरुके दक्षिणभागमें प्रकाशित था वही भारतसूर्य सर्वबाह्यमण्डलसे अक्मिण्डलमें दक्षिणार्द्धमण्डलको संक्रमण करके जब अंतिम सर्वबाह्यमण्डलमें आदि क्षणमें उत्तरार्द्धमण्डल पर आता है तब ( उत्तरदिशामें ) प्रकाशित होता है। और जो सूर्य सर्वाभ्यन्तरमण्डलमें उत्तरदिशागत रहकर मेरुके उत्तर भागको प्रकाशित