________________ मनुष्यक्षेत्रके बाहर सूर्य-चन्द्रकी पंक्ति सम्बन्धमें मतान्तर ] गाथा 83-85 [ 187 परिरय पंक्तिकी मान्यतावाले इन दोनों मतकारोंके बिच उस उस द्वीप-समुद्र में वर्तित परिरय पंक्तिकी संख्याके सिवा सूर्य-चन्द्रादि संख्या, सूर्य-चन्द्रका अन्तर इत्यादि सर्व बाबतमें प्रायः 1४४भिन्नता रहती है तदुपरांत कतिपय १४४विचारणीय स्थल भी उपस्थित होते हैं / 198. आशाम्बरीय (दिग०) और प्रसिद्ध मतकारके बिच होती भिन्नताएँ 1. मनुष्यक्षेत्रके बाहर ‘जो द्वीप-समुद्र जितने लाख थोजनका हो वहाँ चन्द्र-सूर्यकी पंक्तियाँ होती हैं ' यह कथन दोनोंको मान्य है / ___2. दिगम्बरमतके अनुसार बाह्य पुष्कराधकी प्रथम पंक्तिमें 145-145 चन्द्र-सूर्य कहे हैं; जब कि प्रसिद्ध मतके अनुसार उसी प्रथम पंक्तिमें 72 चन्द्र और 72 सूर्य कहे हैं; और इसीलिए दिगम्बरमतकारने स्वोक्त संख्याको संगत करनेके लिए चन्द्र-चन्द्रका परस्पर अन्तर साधिक लाख योजनप्रमाण बताया है, तदनुसार प्रसिद्ध मतकारने स्वोक्त 72-72 चन्द्र-सूर्यकी संख्याको संगत करनेको साधिक दो लाख योजनका अन्तर कहा है / आगेकी अन्य पंक्तियोंके लिए यथायोग्य स्वयं सोच लें / .. 3. उसी पुष्करार्धकी दूसरी पंक्तिसे लेकर प्रत्येक पंक्तिमें पूर्वपंक्तिगत चन्द्र-सूर्योंकी कुल जो संख्या हो उससे अधिक छः छः अथवा सातसातकी वृद्धि करनेको कहा और तदनुसार आठवीं पंक्तिमें 189-189 चन्द्र-सूर्यकी संख्या प्राप्त हुई / जब कि इस प्रसिद्ध मतकारने आगे आगेकी प्रत्येक पंक्तिमें प्रथमकी पंक्तिकी अपेक्षासे (दो सूर्य और दो चन्द्र ) चारकी संख्याकी वृद्धि करनेको कहा जिससे अन्तिम आठवीं पंक्तिमें (86-86 चन्द्र-सूर्य = ) १७२-चन्द्र-सूर्यकी संख्या आती है / . 4. इस तरह होनेसे दिगम्बर मतानुसार बाह्यपुष्कराधकी आठों पंक्तियोंके चन्द्र-सूर्योकी क्रमशः संख्या कुल 1337-1337 की बनती है / जब कि प्रसिद्ध मतकारके अभिप्राय-अनुसार बाह्यपुष्कराधमें कुल 632 चन्द्र और 632 सूर्योकी संख्या प्राप्त होती है। 5. तथा दिगम्बर मतकारने पुष्करवर समुद्रोंकी प्रथम पंक्तिमें सूर्य-चन्द्रोंकी संख्या प्राप्त करनेके लिए ऐसा जणाया कि पुष्करवरद्वीपकी प्रथम पंक्तिमें चन्द्र-सूर्योकी जो संख्या हो उसे द्विगुण करें, वैसा करनेसे पुष्करवर समुद्रमें प्रथम पंक्तिगत चन्द्र-सूर्योकी संख्या प्राप्त होती है / तदनन्तर पंक्तियोंमें छः छः अथवा सात सातकी वृद्धि करें, और इस तरह प्रत्येक द्वीप-समुद्रके लिए समझे / अर्थात् प्रथम पंक्तिके लिए अगले द्वीप-समुद्रकी प्रथम पंक्तिसे द्विगुनत्व और अनन्तर छ:-छः, सात-सातकी वृद्धि समझे / जबकि प्रसिद्ध मतकारने प्रत्येक द्वीप-समुद्रमें प्रथम पंक्तिके लिए तथा आगेकी पंक्तियोंके लिए चार-चारकी वृद्धि करनेका बताया है। सूचना-'त्रिगुणकरण'का सैद्धान्तिक मत स्वतन्त्र होनेके कारण उक्त दोनों मतकारोंके साथ उसकी तुलना करना जरूरी नहीं है क्योंकि “त्रिगुणकरण के अनुसार मनुष्यक्षेत्रके बाहर चन्द्र-सूर्यकी किसी भी प्रकारकी निश्चित व्यवस्था बताई नहीं गई / 199. आशाम्बरीय और प्रसिद्ध मतकार विषयक चन्द्र-सूर्यकी अल्प विचारणा // प्रसिद्ध मतकारकी अपेक्षासे यह सोचनेका है कि जब गाथा ६५वींमें मनुष्यक्षेत्रके बाहर निश्चयसे किसी भी पंक्ति स्थानमें चन्द्र-सूर्यका पचास हजार योजनप्रमाण अन्तर बताया गया है तब इन ८३-८४वीं