________________ १०.कृत्तिका आ ई ऊ ए 6 | शुर(अस्त्र)वत् 11.| रोहिणी | ओ वा वी वू | 5 | शकटाकारवत् | चुर (अस्त्र)धारा | तिगं तह तिगं च / छप्पंचग तिग एकग, पंचगतिग छबगं चेव // 1 // सत्तग दुग दुग | शकटोद्धिसंस्थान पंचग एकेका पंच चउतिगं चेव। एक्कारसग चकं चटक्ककं चेव तारग्गं // 2 // [ज्यो. क.] रुधिरबिन्दु नक्षत्र संबंधी यंत्र / 12.| मृगशीर्ष | वे वो का की मृगमस्तकवत् मृगशिर 13., आर्द्रा मण्याकारवत् 14.| पुनर्वसु के को हा ही | 5 | गृहाकारवत् तुला पुष्य हू हे हो डा शराकारवत् वधेमानक 8810 3. उक्तं च-हयवदन-भग-क्षुर 11 12 13 14 15 -शकट-मृगशिरो-मणि-गृहेषु૧૬ 17 18 चक्राणाम् / प्राकार-शयन 18 20 21 22 . पर्यङ्क-हस्त-मुक्ता-प्रवालानाम् 23 24 25 // 1 // तोरण-मणि-कुण्डल 26 27 28 सिंहविक्रम-स्वपन-गजविलासा 16.| आश्लेषा | डी डू डे डो / 6 | चक्रवत् पताका 17. मघा / मा मी मू मे प्राकारकारवत् शालवृक्ष नाम् / शृङ्गाटक-त्रिविक्रम पूर्वाफाल्गुनी | मो टा टी टू शय्याकारवत् पल्यंकाई मृदङ्गा-वृत्त-द्वियमलानाम्॥२॥ गाथा 80-81 [ 175 19.| उत्तराफाल्गुनी | टे टो पा पी | 2 | पल्यंकाकारवत् | अर्घपल्यंक पर्यङ्क मुरजसदृशानि भानि कथितानि चाश्चिनादीनि //