________________ // 28 नक्षत्रोंकी आकृति आदि विषय सम्बन्धी यन्त्र // आरम्भसिद्वि टीकाके 'रत्नमाला'के आधार नक्षत्रके आधार | नक्षत्र | नक्षत्रके नाम आधार पर नक्षत्रोंकी पर नक्षत्रोंकी आकृति पर जन्माक्षर आकृति के नाम 'अभिजित् / जु जे जो खा | 3 | शृङ्गाटकवत् / गोशीर्षावली |संख्या 174 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी 1. श्रवण | खी खू खे खो | 3 | त्रयपादयत् कासार . | धनिष्ठा | गा गी गू गे 4. | शतभिषक गोसा 5. | पूर्वाभाद्रपद से सो दा दी वाप्य उत्तराभाद्रपद दू ज झ था | मृदङ्गाकारवत् | पक्षिपञ्जर 1. व्यवहारमें अभिजित्के सिवा 27 नक्षत्रानुसार सर्व| वर्तुलाकारवत् पुष्पोपचार व्यवहार प्रवर्तित है, क्योंकि अभिजित् नक्षत्रका चन्द्रमाके 2 | द्वियुगलवत् साथ सहयोग स्वल्पकालीन होनेसे उसकी विवक्षा नहीं है, पर्यवत् अर्धवापी तो भी नक्षत्र तो 28 ही हैं और अठाइसके आधार पर मुरजवत् नौकासंस्थान ली गई गिनती श्री आरम्भ सिद्धि-श्री नारचन्द्रादि जैन अश्वमुखवत् | अश्वस्कंध ज्योतिष ग्रन्थोंमें प्रसिद्ध है। 2. उक्तं च-तिग तिग भगाकार(योनि)वत् भग(योनिसंस्थान) | | पंचगसयं, दुग दुग बत्तीसग | रेवती दे दो चा 8.| अश्विनी चु चे चो ला [ गाथा 80-81 . 9. भरणी ली लू ले लो