________________ 160 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 78-79 १७दो ससि दो रवि पढमे, दुगुणा लवणम्मि धायईसंडे / बारस ससि बारस रवि, तप्पभिइ निदिट्ठ ससि-रविणो / / 78 / / तिगुणा पुबिल्लजुया, अणंतराणंतरंमि खित्तम्मि / कालोए बायाला, विसत्तरि पुक्खरद्धम्मि // 79 // गाथार्थ-पहले जम्बूद्वीपमें दो चन्द्र और दो सूर्य होते हैं, दूसरे लवणसमुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य, धातकी खण्डमें बारह चन्द्र और बारह सूर्य होते हैं। इस धातकीखण्डके चन्द्र-सूर्यकी संख्याको तीन गुनी करनेसे जो संख्या आवे उस संख्या में पहलेके द्वीप-समुद्रोंके चन्द्र-सूर्योंकी संख्याको (अर्थात् जम्बू और लवणके कुल मिलाकर छः छ: चन्द्र-सूर्यकी संख्याको) जोड़नेसे बयालीस चन्द्र-सूर्य कालोदधि-समुद्र में हैं / इस. उद्भुत संख्याको त्रिगुनी करके पूर्वके द्वीप-समुद्रगत सूर्य-चन्द्रोंकी संख्याको जोड़नेसे जो संख्या प्राप्त हो उसका आधा करनेसे अर्ध पुष्करवर द्वीपमें ७२-७२की चन्द्र-सूर्योंकी संख्या होती है / / / 78-79 // विशेषार्थ-पहले जम्बूद्वीपमें दो चन्द्र और दो सूर्य हैं, उनमें दिवस रात्रिको उत्पन्न करनेवाले दो सूर्य हैं और तिथियोंको उत्पन्न करनेवाले दो चन्द्र हैं / इस जंबूद्वीपमें ज्योतिषीके विमान चन्द्र और सूर्य संबंधी ही हैं ऐसा नहीं है परंतु प्रत्येक चन्द्रके परिवार रूप 88 ग्रहोंके, 28 नक्षत्रोंके और 66975 कोडाकोडी तारों के विमान भी हैं और वे रत्नप्रभागत समभूतला पृथ्वीसे 790 योजन जानेके बाद शुरू होते हैं और 110 योजनमें समाप्त होते हैं / अढाईद्वीपवर्ती मनुष्यक्षेत्रमें कृत्रिम नहीं परंतु स्वभावसिद्ध ये ज्योतिषी विमान, अनादिकालसे अचल ऐसे मेरूपर्वतकी चारों ओर परिमंडलाकार गतिसे (वलयाकारमें ) परिभ्रमण करते, स्वप्रकाशित क्षेत्रोंमें दिन और रात्रियोंके विभाग करते हैं, इतना ही नहीं किन्तु अढाईद्वीपरूप इस मनुष्यक्षेत्रमें अनन्तसमयात्मक जो कालद्रव्य है / वह इस सूर्यचन्द्रकी परिभ्रमणरूप क्रियासे ही व्यक्त होता है और वर्तनादि अन्य द्रव्योंके परिणामकी अपेक्षासे रहित जो अद्धाकाल है वह भी इस मनुष्यक्षेत्रमें ही वर्तित है / 80 179. तुलना करें-'धायइसंडप्पभिइ, उद्दिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा / आइल्लचंद सहिया, ते टुति अणंतरं परतो // 1 // आईच्चाणंपि भवे, एसेव विही अणेण कायवो / दीवेसु समुद्देसु य, एमेव परंपरं जाण // 2 // ' 18.. देखिए- सूरकिरियाविसिट्ठो, गोदोहाइकिरियासु निरवेक्खो / अद्धाकालो भन्नइ, समयखेत्तम्मि समयाइ // 1 // ' [ विशेषावश्यक भाष्य ]